पत्थर पर उद्धरण
छाती पर रखा पत्थर, पत्थर
की तरह लुढ़क आना, पत्थर के भीतर देवता, दीप पत्थर का, निरा पत्थर होना जैसे विभिन्न आशयों में पत्थर शब्द का इस्तेमाल करती कविताओं का एक विशिष्ट चयन।

ज़रूरी चीज़ यह है कि जब तलवार तुम्हारी आत्मा के टुकड़े करे, मन को शांत बनाए रखा जाए, रक्तस्राव नहीं होने दिया जाए, तलवार की ठंडक को पत्थर की-सी शीतलता से स्वीकार किया जाए। इस तरह के प्रहार से, प्रहार के बाद तुम अक्षर बन जाओगे।

अगर पीड़ा से कविता नहीं आती तो और कहाँ से कविता आती है, जैसे पत्थर को निचोड़कर ख़ून निकाला जाता है!

हमारा जीवन मनुष्यों के संपर्क से मुक्त होकर वृक्षों में वाणी, गतिशील सरिताओं में पुस्तकें, शिलाओं में सदुपदेश तथा प्रत्येक वस्तु में अच्छाई का दर्शन करने लगता है।

पलस्तर उखाड़ना पत्थर हिलाने से कहीं अधिक आसान है : निस्संदेह कोई काम तो आपको पहले करना ही होगा।

जो आदमी पहाड़ को हटाता है, वह शुरू में छोटे- छोटे पत्थरों को हटाता है।

हमारे यहाँ के मज़दूर, चित्रकार तथा लकड़ी और पत्थर पर काम करने वाले भूखों मरते हैं तब हमारे मंदिरों की मूर्तियाँ कैसे सुंदर हो सकती हैं?

स्त्री, जल-सदृश कोमल एवं अधिक से अधिक निरीह है। बाधा देने की सामर्थ्य नहीं, तब भी उसमें एक धारा है, एक गति है, पत्थरों की रुकावट की भी उपेक्षा करके कतराकर वह चली हो जाती है। अपनी संधि खोज ही लेती है, और सब उसके लिए पथ छोड़ देते हैं, सब झुकते हैं, सब लोहा मानते हैं।

तब मेरा शीतल क्रोध उस जल के समान हो उठा, जिसकी तरलता के साथ, मिट्टी ही नहीं, पत्थर तक काट देने वाली धार भी रहती है।

हमारी सबसे बड़ी महत्त्वाकांक्षा यह है कि हम स्वतंत्र भारत की नींव के पत्थर बन जाएँ और इस तरह हम सबकी आँखों से ओझल होकर विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जाएँ।

पत्थर भी रोने लगता है और वज्र का हृदय भी टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।

जो सहृदयता दर्पण में अपना मुख निरखती है, पत्थर बन जाती है। और सत्क्रिया जो अपने को सुंदर नामों से संबोधित करती है, अभिशाप की जननी बन जाती है।

चिढ़ाने का नाम वह भारी से भारी पत्थर है जो शैतान किसी व्यक्ति पर फेंक सकता है।


पत्थर को पारस के स्पर्श से क्या लाभ?

एक पत्थर की भी अपनी उपयोगिता है, तो मनुष्य जो सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान है, उसे कुछ उपयोग का होना चाहिए, है न?

मंदिर की कोण-शिला उसकी नींव में सबसे नीचे गड़े हुए पत्थर से ऊँची नहीं है।

हे देवी! ख़ान से निकले हुए सर्वोत्तम रत्न को भी सोने में जड़ने की आवश्यकता तो पड़ती ही है।

हमारी प्रत्येक कृति छेनी बन कर हमारा जीवन रूपी पत्थर गढ़ती है।

पत्थर या लोहे पर कुल्हाड़ी नहीं पड़ती। लोग उसे लकड़ी पर ही चलाते हैं।

हर पत्थर की कथा एक पर्वत की ओर जाती है।

मिट्टी का पशुपति (शिव) बनाया तो उससे मिट्टी की क्या महत्ता? शिव की पूजा शिव को प्राप्त होती है, और मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। पत्थर का विष्णु बनाया किंतु विष्णु पत्थर नहीं है। विष्णु की पूजा विष्णु को प्राप्त होती है और पत्थर, पत्थर के रूप में ही रह जाता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere