अपने स्वयं के शिल्प का विकास केवल वही कवि कर सकता है, जिसके पास अपने निज का कोई ऐसा मौलिक-विशेष हो, जो यह चाहता हो कि उसकी अभिव्यक्ति उसी के मनस्तत्वों के आकार की, उन्हीं मनस्तत्वों के रंग की, उन्हीं के स्पर्श और गंध की ही हो।
यदि लेखक के पास संवेदनात्मक महत्व-बोध नहीं है, या क्षीण है, तो विशिष्ट अनुभवों की अभिव्यक्ति क्षीण होगी।
सक्षम सुंदर अभिव्यक्ति तो अविरत साधना और श्रम के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।
कविता एक सामूहिक उद्वेग और सामूहिक आवश्यकता की सहज अभिव्यक्ति है और यह व्यवस्था संपूर्ण रूप से वैयक्तिक है।
सच बात तो यह है कि आत्मपरक रूप से विश्वपरक, जगतपरक होने की लंबी प्रक्रिया की अभिव्यक्ति ही कला है—अभिव्यक्ति-कौशल के क्षेत्र में और अनुभूति अर्थात् अनुभूत वस्तु-तत्व के क्षेत्र में।
साहित्य या कला-रचना में मनुष्य की जिस चेष्टा की अभिव्यक्ति होती है, उसे कुछ लोग मनुष्य की खेल करने की प्रवृत्ति जैसा मानते हैं।
कला और विज्ञान ही में मनुष्य अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति पाता है।
कला में वस्तुतः आत्माभिव्यक्ति नहीं हुआ करती। अभिव्यक्ति होती है, किंतु जीने और भोगनेवाले अपने मन की, अपनी आत्मा की, वह सच्ची अभिव्यक्ति है—यह कहने का साहस नहीं हो पाता।
नास्तिकता प्रायः धर्म की प्राणशक्ति की अभिव्यक्ति रही है, धर्म में वास्तविकता की खोज रही है।
चाहे कविता किसी भाषा में हो, चाहे किसी वाद के अंतर्गत, चाहे उसमें पार्थिव विश्व की अभिव्यक्ति हो, चाहे अपार्थिव की और चाहे दोनों के अविच्छिन्न संबंध की, उसके अमूल्य होने का रहस्य यही है कि वह मनुष्य के हृदय से प्रवाहित हुई है।
साहित्य उस जगह का नाम है जहाँ जाकर आप अनकही की अभिव्यक्ति के लिए शब्द ढूँढ़ सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक वस्तुवादी कवि; जब सामाजिक भावनाओं तथा विश्व-मैत्री की संवेदानाओं से आच्छन्न होकर मानचित्र प्रस्तुत करता है, तब वह उसी प्रकार अनूठा और अद्वितीय हो उठता है जैसे कि किसी क्षेत्र में भिन्न तथा अन्य कवि कदापि नहीं।
रस की इस उन्मत्तता से हमारा चित्त जब मथने लगता है; तब हम उसी को सिद्धि मानने लगते हैं, किंतु नशे को कभी भी सिद्धि नहीं कहा जा सकता है, असतीत्व को प्रेम तो नहीं कहा जा सकता है, ज्वर में विकार की दुर्वार उत्तेजना को, स्वास्थ्य के बल की अभिव्यक्ति नहीं कहा जा सकता है।
उसके चेहरे पर कुछ-कुछ वैसा ही करुणाजनक भाव आ गया था जो हिंदी सिनेमा में ग़ज़ल गाने के पहले हिरोइन के चेहरे पर आ जाता है।
यदि हमें वैविध्यपूर्ण पर स्पष्ट, द्वंद्वमय मानव-जीवन के (अपने अंतर में व्याप्त) मार्मिक पक्षों का वास्तविक प्रभावशाली चित्रण करना है, तो हमें जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचि और उसके सेंसर्स त्यागने होंगे, तथा अनवरत रूप से अपने ढाँचों और फ़्रेमों में संशोधन करते रहना होगा।
प्रेम के एक छोर पर व्यक्तिगत अस्तित्व है, दूसरे पर अभिव्यक्तिगत या केवल भावनात्मक।
अभिव्यक्ति की प्रणाली बदलते ही आलोचकों की नाड़ी छूटने लगती है।
सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए लोकभाषाओं से बल प्राप्त करना ही होगा।
बहुत से पुराने शब्द हैं जो अत्यंत अभिव्यक्ति-प्रवण है। परंतु प्रयोग न होने से लोग भूल गए हैं।
अनुभूति की असाधारणता व्यक्त करने के लिए साधारण भाषा सहज नहीं होती।
सामान्य मनुष्य के साथ कलाकार का सिर्फ़ मन की अनुभूति को व्यक्त करने की क्षमता और अक्षमता को लेकर अंतर होता है, दुःख पाने पर सामन्य मनुष्य बेजार होकर रोना—धोना शुरू कर देता है, कलाकार रोता नहीं है, किंतु उसके मन का रुदन कला के माध्यम से एक अपरूप सुंदर छंद में व्यक्त होता है।
जनतंत्र वह हैं जिसमें रास्तें चलने वाला जो बोले वह भी सुना जाए।
कविता में कवि का आत्मोद्घाटन उतना विश्वसनीय नहीं है, जितनी कि उसकी सामान्य भूमि।
अभ्यंतर का बाह्यीकरण सामंजस्य या द्वंद्व अथवा दोनों के मिश्र-रूप में उपस्थित होता है।
सबको ऑक्सीजन चाहिए, सिर्फ़ जीते रहने या स्वस्थ बने रहने के लिए नहीं, सोचने और फ़ैसले लेने के लिए भी।
हम मरते दम तक बाह्य जीवन-जगत का आभ्यंतरीकरण करते जाते हैं।
सूक्ष्म संवेदनाओं के गुण-चित्र उपस्थित करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है, किंतु शमशेर उसे सहानुभूति से संपन्न कर जाते हैं।
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अभिव्यक्ति के लिए आतुर हो उठने वाला मौलिक-विशेष आत्मचेतस भी होना चाहिए।
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अभिव्यक्ति का संघर्ष दीर्घ होता है।
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हृदय का जगत अपने को व्यक्त करने के लिए व्याकुल रहता है, इसी से चिरकाल से मनुष्य में साहित्य का आवेग मिलता है।
एलियट कला को व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं मानते हैं, किन्तु रवीन्द्रनाथ और इक़बाल, दोनों का विचार है कि कला व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।
सृष्टि मात्र का मतलब ही है अभिव्यक्ति।
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अभिव्यक्ति-संपदा-प्राप्ति के लिए, निरंतर संघर्ष आवश्यक है। वह प्रयत्न-साध्य है, अभ्यासवश है।
अब हम पुराने तरीके से लिखने की अपनी योग्यता को खो चुके हैं। अब हमें नयापन पसंद है। हम मानव जीवन को अभिव्यक्त करने के लिए नई विधाएँ और नई संभावनाओं को खोज रहे हैं।
स्वयं के भाव-स्वभाव से घनिष्ठ परिचय के अभाव में, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति-शैली का विकास नहीं हो सकता।
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अभिव्यक्ति के कार्य के दौरान कवि नई खोज भी कर लेता है।
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अगर आपको इसलिए मार दिया जाता है; क्योंकि आप एक लेखक हैं, तो आप जानते हैं कि यह सम्मान की अधिकतम अभिव्यक्ति है।
क्रोध का एक हल्का रूप है चिड़चिड़ाहट, जिसकी व्यंजना प्रायः शब्दों ही तक रहती है।
उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए शब्द क्षमता घट रही थी और उसका स्थान पटाख़े ले रहे थे।
दुनिया नहीं बदलेगी अगर आप ज़िम्मेदारी का बोझ अपने कंधों पर नहीं लेंगे।
छाया भारतीय दृष्टि से अनुकृति और अभिव्यक्ति की भंगिमा पर अधिक निर्भर करती है। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्यमय प्रतीक-विधान और उपचारवक्रता के साथ स्वानुभूति की विवृति छायावाद की विशेषताएँ हैं। अपने भीतर से मोती के पानी की तरह आंतर स्पर्श करके भाव-समर्पण करने वाली अभिव्यक्ति छाया कांतिमयी होती है।
भरत मुनि ने जब 'नाट्यशास्त्र' लिखा तो 'नाट्यशास्त्र' को उन्होंने पंचम् वेद कहा; अर्थात् चार वेदों की परम्परा में एक नये वेद की आवश्यकता है। उस नए वेद की घोषणा के साथ इस देश का जन-समुदाय एक नए परिवर्तन की, एक नई क्रांति की सूचना देता है।
कहिए आपको जो कहने की ज़रूरत है—बिल्कुल सीधे और सादे शब्दों में, और फिर उसकी ज़िम्मेदारी लीजिए
चीन के बुद्धिजीवियों और प्रोफ़ेसरों और उनका बचाव करने वाले राजनीतिक माफ़िया के बीच एक महीन-सी रेखा है जो उन्हें अलग करती है।
बोलने की आज़ादी में यह समाहित है कि दुनिया परिभाषित नहीं है। यह तभी अर्थपूर्ण होती है जब लोगों को यह अनुमति हो कि वे दुनिया को अपने तरीके से देख सकें।
अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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