मैं जीवन के बाद के जीवन की कल्पना नहीं कर पाता : जैसे ईसाई या अन्य धर्मों के लोग विश्वास रखते हैं और मानते हैं जैसे कि सगे-संबंधियों और दोस्तों के साथ हुई बातचीत जिसे मौत आकर बाधित कर देती है, और जो आगे भी जारी रहती है।
क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं करता, वह केवल दूसरे का दिल दुखाना चाहता है।
बोलने में मर्यादा मत छोड़ना। गालियाँ देना तो कायरों का काम है।
वार्तालाप से बुद्धि विकसित होती है किंतु प्रतिभा की पाठशाला तो एकांत ही है।
सनीचर ने सिर झुकाकर कुछ कहना शुरू कर दिया। वार्तालाप की यह वही अखिल भारतीय शैली थी जिसे पारसी थियेंटरों ने अमर बना दिया है। इसके सहारे एक आदमी दूसरे से कुछ कहता है और वहीं पर खड़े हुए तीसरे आदमी को कानोंकान ख़बर नहीं होती; यह दूसरी बात है कि सौ गज़ की दूरी तक फैले हुए दर्शकगण उस बात को अच्छी तरह सुनकर समझ लेते हैं और पूरे जनसमुदाय में स्टेज पर खड़े हुए दूसरे आदमी को छोड़कर, सभी लोग जान लेते हैं कि आगे क्या होनेवाला है।
अवलोकन, संभाषण, विलास, परिहास, क्रीड़ा, आलिंगन तो दूर रहे, स्त्रियों का स्मरण भी मन को विकृत करने में पर्याप्त है।
लेक्चर का मज़ा तो तब है जब सुननेवाले भी समझें कि यह बकवास कर रहा है और बोलनेवाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ। पर कुछ लेक्चर देनेवाले इतनी गंभीरता से चलते कि सुननेवाले को कभी-कभी लगता था यह आदमी अपने कथन के प्रति सचमुच ही ईमानदार है।
बृहदारण्यक उपनिषद् में; याज्ञवल्क्य के साथ जनक की सभा में, उस समय के सबसे बड़े ज्ञानियों के साथ बहस को गार्गी ने ब्रह्मोद्य कहा है।
सभी अच्छी किताबों का अध्ययन करना, अतीत के श्रेष्ठ मस्तिष्कों के साथ संवाद करने जैसा है।
जब कोई आदमी बातचीत में ऐसा रुख़ अपना ले जैसा कि पेशेवर गवाह कचहरी में सच कहने की क़सम खाकर जिरह में दिखाते हैं, तो आगे सवाल पूछना बेकार है।
नाटक में शब्दों से मोह हो जाता है। यह फ़ालतू का मोह जानलेवा हो जाता है। अभिनेता के लिए भी, निर्देशक के लिए भी, यह बात मुझे रंजीत कपूर ने बताई थी।
उनकी बातचीत किसी एक ऐसी घटना के बारे में होती रही 'दोपहर', 'फंटूश', 'चकाचक', ‘ताश’, और ‘पैसे’ का ज़िक्र उसी बहुतायत से हुआ जो प्लानिंग कमीशन के अहलकारों में ‘इवैल्युएशन’, ‘कोआर्डिनेशन’, ‘डवटेलिंग’ या साहित्यकारों में ‘परिप्रेक्ष्य’, ‘आयाम’, ‘युगबोध’, ‘संदर्भ’ आदि कहने में पाई जाती है।
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यह हमारी गौरवपूर्ण परंपरा है कि असल बात; दो-चार घंटे की बातचीत के बाद अंत में ही निकलती है।
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जो बात कही जा सकती है वह स्पष्ट रूप से भी कही जा सकती है।
विचार के मंच का इस्तेमाल किसी एक विषय पर बार-बार सोचने के लिए नहीं हो सकता। कोइ मंचाधीश ऐसा करता है तो आशंका फैल जाती है कि उसका कोई स्वार्थ है।
हम बचपन से गद्य बोलते आ रहे हैं, लेकिन गद्य कैसी दुरूह चीज़ है—यह प्रथम गद्यकारों की पचना देखकर ही समझ सकते हैं।
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कम बातें कीजिए, कम में बातें कीजिए और काम की ही बातें कीजिए।
पढ़ना, मौन वार्तालाप के अतिरिक्त क्या है ?
वार्तालाप में अच्छा स्वभाव वाग्विदग्धता की अपेक्षा अधिक सुखकर होता है और वह व्यक्तित्व को एक ऐसी आत्मा प्रदान करता है जो सौंदर्य की अपेक्षा अधिक प्यारी होती है।
प्रति-वृत्त का अर्थ है टकराहट।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere