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शब्द पर कविताएँ

वर्णों के मेल से बने

सार्थक वर्णसमुदाय को शब्द कहा जाता है। इनकी रचना ध्वनि और अर्थ के मेल से होती है। शब्द को ब्रहम भी कहा गया है। इस चयन में ‘शब्द’ शब्द पर बल रखती कविताओं का संकलन किया गया है।

चोरी

गीत चतुर्वेदी

पहाड़ पर लालटेन

मंगलेश डबराल

हम अब कुछ देर

विनोद कुमार शुक्ल

तुमने देखा

कुँवर नारायण

बचपन से लिंग अब तक

उस्मान ख़ान

दुनियाएँ

प्रदीप्त प्रीत

अपशब्द प्रेम

अजंता देव

जेएनयू में वसंत

आमिर हमज़ा

अगर हो सके

अशोक वाजपेयी

जान

बेबी शॉ

शब्दों से परे

तादेऊष रूज़ेविच

शब्द तक

कुँवर नारायण

यथार्थ

सुधीर रंजन सिंह

फ़ैसला

अन्ना अख्मातोवा

गूँगापन

बेला अख़्मादूलीना

अक्षर

राजेंद्र यादव

गूँगापन

बेला अख़्मादूलीना

शांति

फैदोर त्यूतशेव

मुझे संज्ञा दो

हुआन रामोन हिमेनेज़

खुले वाक्य

हैदर एरगुलेन

एक शब्द ऐसा है

एमिली डिकिन्सन

आँसू का अनुवाद

मदनलाल डागा

चुपचाप संसार

जैफ़री मैकडेनियल

लायब्रेरी में एक घटना

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

साझे हर्फ़

दर्शन बुट्टर

दरवाज़ा

तादेऊष रूज़ेविच

आभास

कोलिन फ़ाल्क

और मैं सोचा करता था

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

कविताएँ

फ़ाज़िल हुस्नू दालारजा

शिशु

नरेश सक्सेना

व्याख्या

नेमिचंद्र जैन

आख़िरी लफ़्ज़

अहमद शामलू

ज्ञ

प्रकाश

स्वीकारोक्ति

मात्स त्रात

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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