शराब पर उद्धरण

शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ

है जिसे मदिरा, हाला, सुरा भी कहते हैं। हमारे समाज के अधिकांश हिस्से में शराब को एक बुराई और अनैतिक चीज़ मानते हैं। शराबियों का सम्मान और विश्वास कम ही किया जाता है, बावजूद इसके शराब पीने वालों के लिए इसकी उपस्थिति सुख और दुख दोनों में ही केंद्रीय होती है। साहित्य में इसे अराजकता, बोहेमियन जीवन-प्रवृत्ति, आवारगी के साथ चलने वाली चीज़ माना जाता है। शराब कविता का विषय बहुत शुरू से ही रही है। यहाँ प्रस्तुत है—शराब विषयक कविताओं से एक विशेष चयन।

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कोशिश करो कि कभी अपने घर के बाहर शराब के नशे में धुत्त मिलो।

जैक केरुआक
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कुछ शराबों की तरह हमारा प्यार तो पूरा हो सकता है और ही कहीं जा सकता है।

ग्राहम ग्रीन
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पीते वक़्त ख़्वाहिश होती है अच्छा संगीत सुनूँ, और संगीत के इर्द-गिर्द ख़ामोशी हो।

कृष्ण बलदेव वैद
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पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद
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पीते वक़्त भी निपट अकेला होता हूँ, लिखते वक़्त भी।

कृष्ण बलदेव वैद
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पीते वक़्त अगर लिखने की-सी कैफ़ियत पैदा हो जाए तो पीना सिर्फ़ पीना नहीं रहता।

कृष्ण बलदेव वैद
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लिखते वक़्त अगर बग़ैर पिए पीने का-सा सरूर जाए तो लिखने में भी पीने की-सी कैफ़ियत पैदा हो जाती है।

कृष्ण बलदेव वैद
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नशा उतर जाने के बाद हदें फिर हावी हो जाती हैं। लेकिन क्षणिक या अस्थायी ‘बेहदी’ भी बुरी नहीं होती।

कृष्ण बलदेव वैद
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पीता ज़्यादा नहीं। ज़्यादा पी ही नहीं सकता।

कृष्ण बलदेव वैद

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere