
एक बार जब आप अपना पैर उठा लेते हैं, तो उसे दुबारा नीचे रखने में जल्दबाज़ी न करें : कौन बता सकता है कि आपका क़दम साँप के किस ख़तरनाक बिल पर पड़ जाए।

हे भारत! मनुष्य को चाहिए कि वह साँप, अग्नि, सिंह और अपने कुल में उत्पन्न व्यक्ति का अनादर न करे, क्योंकि ये सभी बड़े तेजस्वी होते हैं।

झूठ बोलने वाले मनुष्य से सब लोग उसी तरह डरते हैं, जैसे साँप से।

हे निशाचर! जो लोक-विरोधी कठोर कर्म करने वाला है, उसे सब लोग सामने आए हुए दुष्ट सर्प की भाँति मारते हैं।

साँप काटे हुए आदमी के मुख में नमक देने पर वह उसे मिट्टी बताता है। इसी प्रकार यदि मूर्ख को यह ज्ञान अमृत तुल्य लगे तो हे जीवन! उसे ज्ञान रूपी बूटी घोल कर पिलाओ।

क्या बाल रवि अंधकार को नष्ट नहीं करता? क्या छोटी दावाग्नि जंगल नहीं जला देती? क्या बाल सिंह हाथी का दलन नहीं करता? क्या बाल सर्प डसता नहीं?

जैसे साँप बिल में रहने वाले चूहों को निगल जाता है, उसी प्रकार दूसरों से लड़ाई न करने वाले राजा तथा विद्याध्ययन आदि के लिए घर छोड़कर अन्यत्र न जाने वाले ब्राह्मण को पृथ्वी निगल जाती है।

अस्पृश्यता सहस्र फनों वाला एक सर्प है और जिसके एक-एक फन में विषैले दाँत हैं। इसकी कोई परिभाषा संभव ही नहीं है। उसे मनुष्य अन्य प्राचीन स्मृतिकारों की आज्ञा से भी कुछ लेना-देना नहीं है। उसको अपनी निजी और स्थानीय स्मृतियाँ हैं।
-
संबंधित विषय : अस्पृश्यताऔर 1 अन्य

अग्नि लकड़ियों को हिला देने से प्रज्वलित हो जाती है। साँप छेड़ने पर अपना फन फैलाता है। इसी प्रकार मनुष्य भी प्रायः क्षोभ से अपने पराक्रम को प्राप्त होता है।

अकारण शत्रुता करने वाले उन भयंकर दुष्टों से कौन नहीं भयभीत होगा जिनके मुख अत्यंत विषैले सर्पों के विष-भरे मुखों के समान सदा ही दुर्वचनों से भरे रहते हैं।

मुझे लोभ रूपी सर्प ने डस लिया है और स्वार्थ रूपी संपत्ति से मेरे पैर भारी हो गए हैं। आशा रूपी तरंगों ने मेरे शरीर को तपा डाला है। और गुरुकृपा से संतोषरूपी वायु शीतलता प्रदान कर रहा है। मुझे विषयरूप नीम मीठा लगता है और भजनरूपी मधुर गुड़ कड़वा लग रहा है।

जो साँप अपना केंचुल न छोड़ सके उसे मरना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार वे मस्तिष्क जिन्हें उनकी राय बदलने से रोका जाता है; मस्तिष्क नहीं रह जाते।

बुद्धिमान पुरुष (असमय में) कछुए की तरह अंग सिकोड़ लें और मार खाकर भी चुप रह जाए किंतु अवसर आने पर काले साँप के समान उठ खड़ा हो।

अस्पृश्यता सहस्त्र फनों वाला सर्प है और जिसके एक-एक फन में विषैले दाँत हैं। इसकी कोई परिभाषा संभव ही नहीं है। उसे मनुष्य अन्य प्राचीन स्मृतिकारों की आज्ञा से भी कुछ लेना-देना नहीं है। उसकी अपनी निजी और स्थानीय स्मृतियाँ हैं।

दुर्जन विद्वान हो तो भी उसे त्याग देना ही उचित है। क्या मणि से अलंकृत सर्प भयंकर नहीं होता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere