झूठ पर उद्धरण
झूठ मिथ्या या असत्य
वचन है। इसे सत्य का छद्म या भ्रम भी कहा जाता है। यहाँ झूठ शब्द-केंद्र पर परिधि पारती कविताओं का एक चयन प्रस्तुत है।

सच्चाई अक्सर आक्रामकता का एक भयानक हथियार होता है। सच के साथ झूठ बोलना और यहाँ तक कि हत्या करना भी संभव है।

जाओ, उड़ो, तैरो, कूदो, उतरो, पार करो, अज्ञात से प्रेम करो, अनिश्चित से प्रेम करो, जिसे अब तक नहीं देखा है—उससे प्रेम करो… किसी से भी प्रेम मत करो—तुम जिसके हो, तुम जिसके होगे—अपने आपको खुला छोड़ दो, पुराने झूठ को हटा दो, जो नहीं किया उसे करने की हिम्मत करो, वही करने में तुम्हें ख़ुशी मिलेगी… और प्रसन्न रहो, डर लगने पर वहाँ जाओ जहाँ जाने से डरते हो, आगे बढ़ो, ग़ोता लगाओ, तुम सही मार्ग पर हो।

लोग केवल तभी झूठ बोलते हैं, जब कोई ऐसी चीज़ होती है जिसे खोने का उन्हें बहुत डर होता है।

भारतीय धर्म ने और भारतीय संस्कृति ने कभी नहीं कहा कि केवल हमारा ही एक धर्म सच्चा है और बाक़ी के झूठे हैं। हम तो मानते हैं कि सब धर्म सच्चे हैं, मनुष्य के कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं। सब मिल कर इनका एक विशाल परिवार बनता है। इस पारिवारिकता को और आत्मीयता को को जो चीज़ें खंडित करती है उनकी छोड़ देने के लिए सब को तैयार रहना ही चाहिए। हर एक धर्म-समाज अंतर्मुख होकर अपने दिल को टटोल कर देखे कि जागतिक मानवीय एकता का द्रोह हमसे कहाँ तक हो रहा है।

झूठ घृणित है और उसका अपना स्वयं का विकराल जीवन है। वह अपने चारों ओर फैली सच्चाई को दूषित कर देता है।

हमें उस झूठी स्त्री को मार देना चाहिए जो जीवित स्त्री को साँस लेने से रोकती है।

यह बुद्धिजीवियों की ज़िम्मेदारी है कि वे सच बोलें और झूठ उजागर करें।

अपने देश के लिए झूठ बोलना हर व्यक्ति का देशभक्तिपूर्ण कर्त्तव्य है।
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संबंधित विषय : देशभक्तिपूर्ण

औरत जब लड़की में बदल जाए तो बिल्कुल चुप रहो। थक जाए, चुप हो जाए, तो मर्दों का बनाया सबसे झूठा वाक्य बोलो, आप तो ग़ुस्से में और सुंदर हो जाती हैं।

यह सब झूठ था, सब बदबू कर रहा था, झूठ की बदबू, यह सब अर्थ, ख़ुशी और सुंदरता का भ्रम देता था।

अत्यधिक ज्ञानवान् व्यक्ति को झूठ न बोलना कठिन लगता है।

धर्म परिवर्तन करने के बारे में मैं यह नहीं कहना चाहता कि यह कभी उचित हो ही नहीं सकता। हमें दूसरों को अपना धर्म बदलने के लिए निमंत्रण नहीं देना चाहिए। मेरा धर्म सच्चा है और दूसरे सब धर्म झूठे हैं, इस तरह की जो मान्यता इन निमंत्रणों के पीछे रहती है, उसे मैं दोषपूर्ण मानता हूँ। लेकिन जहाँ ज़बरदस्ती से या ग़लतफ़हमी से किसी ने अपना धर्म छोड़ दिया हो, वहाँ उस में जाने में बाधा नहीं होनी चाहिए। इतना ही नहीं उसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसे धर्म-परिवर्तन नहीं कहा जा सकता।

पूर्णतावादी शासन का आदर्श विषय कायल नाजी या समर्पित कम्युनिस्ट नहीं, बल्कि वे लोग हैं जिनके लिए तथ्य और कल्पना; सच और झूठ के बीच भेद ख़त्म हो गया है।

यह मेरा विश्वास है कि आम तौर पर सच झूठ से बेहतर होता है।

जब तक सच्चाई अपने जूते पहन रही होती है, तब तक झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर चुका होता है।

मुझे अपना धर्म झूठा लगे तो मुझे उसका त्याग कर चाहिए। दूसरे धर्म में जो कुछ अच्छा लगे, उसे मैं अपने धर्म में ले सकता हूँ लेना चाहिए। मेरा धर्म अपूर्ण लगे तो उसे पूर्ण बनाना मेरा फ़र्ज़ है। उसमें दोष दिखाई दें तो उन्हें दूर करना भी फ़र्ज़ है।

अगर आप सच्चाई की तलाश कर रहे हैं तो शैम्पेन झूठ पकड़ने की मशीन से बेहतर है।

हम वास्तव में केवल उस झूठ के लिए दंडित होते हैं, जिसे हम स्वयं बताते हैं।

शत्रुओं के द्वारा जो सच्चे न हों ऐसे छोटे छोटे दोषों का आरोपण सज्जनों की निर्दोषता को सूचित करता है क्योंकि यदि सत्य दोष होगा तो झूठा दोष आरोपण करने के लिए कोई उद्योग नहीं करेगा।

मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।

जो वास्तव है उसे दबाना, जो अवास्तव है उसका आचरण करना- यही तो अभिनय है।

अंधकार का आलोक से, असत् का सत् से जड़ का चेतन से और बाह्य जगत का अंतर्जगत से संबंध कौन कराती है? कविता ही न।

तात! मेरे विचार से प्राणियों की हिंसा न करना ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है। किसी की प्राण-रक्षा के लिए झूठ बोलना पड़े तो बोल दे, किंतु उसकी हिंसा किसी तरह न होने दे।

झूठ बोलने वाले मनुष्य से सब लोग उसी तरह डरते हैं, जैसे साँप से।

मेरे सामने जब कोई असत्य बोलता है तब मुझे उस पर क्रोध होने के बजाए स्वयं अपने ही ऊपर अधिक कोप होता हैं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि अभी मेरे अंदर-तह में-असत्य का वास है।

तुम झूठ से शायद घृणा करते हो, मैं भी करता हूँ; परंतु जो समाजव्यवस्था झूठ को प्रश्रय देने के लिए ही तैयार की गई हैं, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना चाहो, तो तुम्हें झूठ का ही आश्रय लेना पड़ेगा।

पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

जो कुछ दृश्य है वह असत् है- यह बात निश्चित है।

असत्य अधिक आकर्षक होता है।

मैं मृत्यु से भी उतना नहीं डरता, जितना झूठ से डरता हूँ।

झूठ की सूरत देखने में कैसी चिकनी-चुपड़ी होती है।

ख़ुशामद ओर शुद्ध सेवा में उतना अंतर है जो झूठ और सच में है।

राजन्! परिहासयुक्त वचन असत्य होने पर भी हानिकारक नहीं होता। अपनी स्त्रियों के प्रति, विवाह के समय, प्राण-संकट के समय तथा सर्वस्व का अपहरण होते समय विवश होकर असत्य भाषण करना पड़े तो वह दोषकारक नहीं होता। ये पाँच प्रकार के असत्य पापशून्य कहे गए हैं।

मैं इसलिए उदास नहीं हूँ कि तुमने मुझसे झूठ बोला, मैं इसलिए उदास हूँ; क्योंकि अब आगे से मैं तुम्हारा भरोसा नहीं कर पाऊँगा।

सबसे अच्छा तो यही है कि झूठ का कोई जवाब ही न दिया जाए। झूठ अपनी मौत मर जाता है। उसकी अपनी कोई शक्ति नहीं होती। विरोध पर वह फलता-फूलता है।

असत्य चिरस्थायी स्रोत वाला होता है।

झूठ बोला जाना सबसे बुरा तब है जब आपको यह मालूम होता है कि आप इस योग्य भी नहीं थे कि आप से सच बोला जाए।

यह जानकर आश्चर्य क्यों होता है कि हमारे सिवाय अन्य लोग भी झूठ बोलने में सक्षम हैं?

हम केवल झूठ, धोखेबाज़ी और अंतविरोध हैं। हम स्वयं को स्वयं से छिपाते भी हैं और छल-कपट भी करते हैं।


मैं असत्य बोलकर, जिससे असत्य बोलता हूँ, उसकी अपेक्षा अपनी अधिक हानि करता हूँ।

इस समाज में हमारी दाहिनी तरफ़ भी झूठ है और बाईं तरफ़ भी। सामने भी और पीछे भी, झूठ ही झूठ है जिसके सबब ये झल्लाहटें हैं और खोट ही खोट है जिसके बाइस ये झुँझलाहटें हैं।

एक झूठ संदेह से अधिक आरामदायक है, प्रेम से अधिक उपयोगी है, सत्य से अधिक स्थाई है।

तुम झूठ से शायद घृणा करते हो, मैं भी करता हूँ; परंतु जो समाजव्यवस्था झूठ को आश्रय देने के लिए ही तैयार की गई है, उसे मानकर अगर कोई कल्याण-कार्य करना चाहो, तो तुम्हें झूठ का ही आश्रय लेना पड़ेगा।

सबसे अच्छा तो यही है कि झूठ का कोई जवाब ही न दिया जाए। झूठ अपनी मौत मर जाता है। उसकी अपनी कोई शक्ति नहीं होती। विरोध पर वह फलता-फूलता है।

मेरे सामने जब कोई असत्य बोलता है तब मुझे उस पर क्रोध होने के बजाए स्वयं अपने ही ऊपर अधिक कोप होता है, क्योंकि में जानता हूँ कि अभी मेरे अंदर—तह में—असत्य का वास है।

झूठे की सज़ा यह नहीं है कि उस पर विश्वास नहीं किया जाता, बल्कि यह है कि वह किसी और पर विश्वास नहीं कर सकता।

मैं वह झूठ हूँ, जो हमेशा सच बोलता है।

जब तक सच जूते पहन रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया के चक्कर लगा कर आ जाता है।

जो नकल कर सकता है वह कुछ भी कर सकता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere