अज्ञान पर उद्धरण
"अज्ञान" का अर्थ है
"ज्ञान का अभाव" या "अज्ञानता।" यह शब्द उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें किसी व्यक्ति को किसी विशेष विषय, तथ्य या सत्य की जानकारी नहीं होती है। अज्ञान का मतलब है नासमझी या अन्धकार में रहना। इसे किसी चीज़ की जानकारी न होना या उसकी सही समझ न होना भी कहा जा सकता है। अज्ञान अक्सर आत्मज्ञान और सत्य के विपरीत माना जाता है। आध्यात्मिक संदर्भ में, अज्ञान को जीवन के सत्य, वास्तविकता या ईश्वर के प्रति अज्ञानता माना जा सकता है।

संसार में नीति, नियति, वेद, शास्त्र और ब्रह्म सबको जानने वाले मिल सकते हैं, परंतु अपने अज्ञान को जानने वाले मनुष्य विरले ही हैं।


अज्ञान की निवृत्ति में ज्ञान ही समर्थ है, कर्म नहीं, क्योंकि उसका अज्ञान से विरोध नहीं है और अज्ञान की निवृत्ति हुए बिना राग-द्वेष का भी अभाव नहीं हो सकता।

अज्ञान सदैव ही आत्मप्रशंसा के लिए तैयार रहता है।

अनेक विद्याओं का अध्ययन करके भी जो समाज के साथ मिलकर आचरणयुक्त जीवन व्यतीत करना नहीं जानते, वे अज्ञानी ही समझे जाएँगे।

अधिकांश अज्ञान समाप्य है। हम नहीं जानते क्योंकि हम जानना नहीं चाहते।

अज्ञान निर्दोषता नहीं है, पाप है।

आदमी अपनी अज्ञानता के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार है।


वास्तविकता उन संभावनाओं में से एक है, जिसे मैं नज़रअंदाज नहीं कर सकता।

अज्ञान भगवान का शाप है।

किसी विषय में अधूरे ज्ञान से अच्छा है उस विषय में अज्ञान।

शास्त्र कटु औषधि के समान अविद्यारूप व्याधि का नाश करता है। काव्य आनंददायक अमृत के समान अज्ञान रूप रोग का नाश करता है।

अज्ञान अंधकार-स्वरूप है। दीया बुझाकर भागने वाला यही समझता है कि दूसरे उसे देख नहीं सकते, तो उसे यह भी समझ रखनी चाहिए कि वह ठोकर खाकर गिर भी सकता है।

सर्वव्यापी परमात्मा न किसी का पाप लेता है और न किसी का पुण्य। अज्ञान द्वारा ज्ञान आवृत्त है, इस कारण जीव मोहित हो रहे हैं।

आज वही सारहीन है जिस पर कल आश्चर्य प्रकट किया जा रहा था। जो कल तक ज्ञान समझा जाता था, आज वही अज्ञान माना जा रहा है। कल शायद वह दोषी माना जाएगा, जिसे आज ज्ञान प्राप्त है। वह वस्तु ही कहाँ है जिसमें परिवर्तशीलता न हो?

फूलों से आँखों को हटाकर काँटों या सूखे पत्तों पर ज़माना उतना ही बड़ा भ्रम है जितना फूलों को देखते-देखते काँटों और सूखे पत्तों की बिल्कुल उपेक्षा और अवहेलना करना। अपनी-अपनी जगह सबका उपयोग होना चाहिए।

अज्ञान प्रशंसा की जननी है।

यथार्थवाद भले की उपेक्षा करके बुरे के चित्रण को नहीं कहा जा सकता, फिर वह चित्रण कितना भी यथार्थ क्यों न हो। इसी प्रकार उस चीज़ को आदर्शवाद नहीं कह सकते जो केवल रूढ़ि समर्पित सदाचार के उपदेश का नामांतर है।


न पाप है, न पुण्य है, सिर्फ़ अज्ञान है। अद्वैत की उपलब्धि से यह अज्ञान मिट जाता है।

भोलेपन से युक्त हँसमुख स्वभाव, सौंदर्य को आकर्षक, ज्ञान को आनंदप्रद, और वाग्विदग्धता को प्रिय बना देता है। यह बीमारी, निर्धनता और वेदना को हलका कर देता है, अज्ञान को प्रिय सरलता में बदल देता है और विकृति को रुचिकर बना देता है।

दरिद्रता के दुःख को याचना से दूर करने के अज्ञान से बढ़कर अज्ञान और कोई नहीं है।

कटने वाले पेड़ पर अज्ञानी पक्षी अपना घोंसला बना रहा है।

हे अर्जुन! आसुरी संपत्ति के साथ उत्पन्न हुए मनुष्य में दभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, निष्ठुरता और अज्ञान होते हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere