हमें बुरे स्वभाव की व्याख्या हीन भावना की निशानी के रूप में करनी चाहिए।
राजन्! दूसरों की निंदा करना या चुग़ली खाना दुष्टों का स्वभाव ही होता है। श्रेष्ठ पुरुष तो सज्जनों के समीप दूसरों के गुणों का ही वर्णन करते हैं।
लोग कहते हैं—दुष्ट के सारे ही काम अपराध होते हैं। दुष्ट कहता है— मैं भला आदमी हो जाता किंतु लोगों के अन्याय ने मुझे दुष्ट बना दिया है।
जिस तरह दानशीलता मनुष्य के दुर्गुणों को छिपा लेती है, उसी तरह कृपणता उसके सद्गुणों पर पर्दा डाल देती है।
लक्षणरहित (सदोष या दूषित) काव्य से दुष्टपुत्र के समान सर्वत्र निंदा होती है।
हे निशाचर! जैसे विषमिश्रित अन्न का परिणाम तुरंत ही भोगना पड़ता है, उसी प्रकार लोक में किए गए पापकर्मों का फल भी शीघ्र ही मिलता है।
दुःसमय में जब मनुष्य को आशा और निराशा का कोई किनारा नहीं दिखाई देता तब दुर्बल मन डर के मारे आशा की दिशा को ही ख़ूब कस कर पकड़े रहता है।
माशूक़ वह बला है, जिसमें कोई ख़ामी नज़र नहीं आती, जिससे प्यार के बदले प्यार नहीं माँगा जाता, जो हाड़-माँस का होकर भी अशरीरी होता है, जिसकी हर ख़ता माफ़ होती है, हर ज़ुल्म पोशीदा।
कुसंग से बढ़कर पाप संसार में नहीं है और कुसंगी के साथ रहने के कारण बहुत दुःख झेलना पड़ता है।
साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।
संतों के द्वारा दिया गया संताप भी भला होता है और दुष्टों के द्वारा दिया गया सम्मान भी बुरा होता है। सूर्य तपता है तो जल की वर्षा भी करता है। परंतु दुष्ट के द्वारा दिया गया भक्ष्य भी मछली का प्राण ले लेता है।
बुरा कर्म बुरा है चाहे वह कृत हो, चाहे कारित और चाहे अनुमोदित।
बुरे स्वभाव के कारण प्राप्त क्लेश को कोई नहीं मिटा सकता, जैसे काजल का कलुष नहीं धोया जा सकता।
कोई बुरा आदमी अच्छा कवि नहीं हो सकता।
सबको पीड़ित करने वाली भगवती भवितव्यता ही प्रायः प्राणी के शुभ और अशुभ का विधान करती है।
कड़वी बात बोलने वाले तथा मिथ्या कलंक ढूँढ़ने वाले दुष्ट जन कटुध्वनि करने वाली तथा अंगों को मलिन करने वाली बाँधने की बेड़ियों की भाँति दुःख देते हैं। सज्जन लोग अच्छी वाणी से पद-पद पर मन को वैसे ही प्रसन्न कर देते हैं, जैसे पग-पग पर मधुर ध्वनि करने वाले नूपुर।
ऐसे दुष्ट बहुत होने चाहिए। हम पर उनका उपकार है। वे हमारे पापों का प्रक्षालन, बिना कोई मूल्य लिए और बिना साबुन के करते हैं। वे मुफ़्त में मज़दूर हैं जो हमारा बोझा ढोते हैं। वे हमें भवसागर से पार कर देते हैं और स्वयं नरक चले जाते हैं।
दुष्ट कहीं का, वेद-पुराण का नाम लेता है। मांस-मदिरा खाना पीना है तो यों ही खाने में किसने रोका है, धर्म को बीच में क्यों डालता है?
दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। वह एक बुराई नहीं कर जाता है तब तक उसकी सो बुराइयाँ फैल जाती हैं। मैं तेरी भलाई चाहता हूँ, और तू भी मेरी बुराई, तो इसका फल यही होगा कि तुझे भलाई प्राप्त नहीं होगी और मुझे बुराई नहीं पहुँचेगी।
दुर्जन विद्वान हो तो भी उसे त्याग देना ही उचित है। क्या मणि से अलंकृत सर्प भयंकर नहीं होता है।
प्रायः दुनिया का हर देश यह विश्वास करता है कि स्रष्टा ने उसे कुछ विशेष गुण देकर भेजा है, कि वही दूसरों की अपेक्षा श्रेष्ठ जाति या समुदाय का है। चाहे दूसरे अच्छे हों या बुरे, लेकिन उनसे कुछ घटिया प्राणी हैं।
जो लोग स्वभाव से ही दुष्ट होते हैं उनका ज्ञान भी विरुद्ध ही होता है।
दुर्जन रक्षित न कहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere