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घर पर कविताएँ

महज़ चहारदीवारी को ही

घर नहीं कहते हैं। दरअस्ल, घर एक ‘इमोशन’ (भाव) है। यहाँ प्रस्तुत है—इस जज़्बे से जुड़ी हिंदी कविताओं का सबसे बड़ा चयन।

घर की याद

भवानीप्रसाद मिश्र

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

विनोद कुमार शुक्ल

देना

नवीन सागर

घर रहेंगे

कुँवर नारायण

दूर से अपना घर देखना चाहिए

विनोद कुमार शुक्ल

घर

ममता बारहठ

फ़र्श पर

निर्मला गर्ग

दरवाज़े

मानव कौल

हंडा

नीलेश रघुवंशी

पिता

नवीन रांगियाल

घर में अकेली औरत के लिए

चंद्रकांत देवताले

बेघर

सुधांशु फ़िरदौस

घर

बद्री नारायण

अपने घर की तलाश में

निर्मला पुतुल

घर का रास्ता

मंगलेश डबराल

किराए का घर

संदीप तिवारी

घर जाने में

पंकज प्रखर

जड़ें

राजेंद्र धोड़पकर

घर

दिविक रमेश

संदिग्ध

नवीन सागर

मनवांछित

जितेंद्र कुमार

वापसी

तादेऊष रूज़ेविच

गृहस्थन होती लड़की

गोविंद माथुर

कचरा

निखिल आनंद गिरि

दीवारें

निखिल आनंद गिरि

कोरोना में किचेन

श्रीप्रकाश शुक्ल

फ़ैमिली अलबम

विजया सिंह

घर की याद

मारीना त्स्वेतायेवा

कमरा

बोरीस पस्तेरनाक

थपकी

यानिस रित्सोस

घर

ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

बेन्हा

अशरफ़ अबूल-याज़िद

काहिरा की एक गली

अशरफ़ अबूल-याज़िद

टूटा हुआ दरवाज़ा

यानिस रित्सोस

विदा

जूडिथ रोड्रीगेज़

घर

मारीना त्स्वेतायेवा

कमरे के बारे में

शुन्तारो तानीकावा

नीले मकान

होर्खे लुइस बोर्खेस

उजड़ी बस्ती

सर्गेई येसेनिन

आँगन

होर्खे लुइस बोर्खेस

आख़िरी बार

राही डूमरचीर

लौटना

अजंता देव

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere