राष्ट्र पर उद्धरण

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अपने मुँह से अपनी तारीफ़ करना हमेशा ख़तरनाक-चीज़ होती है। राष्ट्र के लिए भी वह उतनी ख़तरनाक है, क्योंकि वह उसे आत्मसंतुष्ट और निष्क्रिय बना देती है, और दुनिया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती है।

जवाहरलाल नेहरू
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ईश्वरीय प्रकाश किसी एक ही राष्ट्र या जाति की संपत्ति नहीं है।

महात्मा गांधी
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किसी भी राष्ट्र की बहुत थोड़ी पुस्तकें पठनीय होती हैं।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
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आज भारतीय ज्ञान केवल भारत राष्ट्र के पुनरुत्थान के लिए अपरिहार्य नहीं है अपितु मानव जाति के पुनर्शिक्षण शक्षण के लिए भी।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन