
यदि समग्र भाव से समस्त नारी जाति के दुःख-सुख और मंगल-अमंगल की तह में देखा जाए, तो पिता, भाई और पति की सारी हीनताएँ और सारी धोखेबाज़ियाँ क्षण भर में ही सूर्य के प्रकाश के समान आप से आप सामने आ जाती हैं।

पुरुषों का क्षणिक दुःख तो क्षण भर में ही जाता है, लेकिन जिसे सदा दुःख सहना पड़ता है वह है नारी।

समुद्र के समान वह प्रतिक्षण मेरे नेत्रों को क्षण-क्षण में नया-नया-सा दिखाई पड़ रहा है।

आविष्कार से एक क्षण में इतना विनाश हो जाता है जिसके पुनर्निर्माण में सारा युग लगता है।

पल भर की भावुकता मनुष्य के जीवन को कहाँ से कहाँ खींच ले जाती है।

जीवन की गहराई की अनुभूति के कुछ क्षण ही होते हैं, वर्ष नहीं। परंतु यह क्षण निरंतरता से रहित होने के कारण कम उपयोगी नहीं कहे जा सकते।

धुआँ देने के लिए मत जल। ज़ोर-ज़ोर से प्रज्वलित हो और देगपूर्वक आक्रमण करके शत्रु सैनिकों का संहार कर डाल। तू एक मुहूर्त या एक क्षण के लिए भी वैरियों के मस्तक पर जलती हुई आग बनकर छा जा।

सबसे अधिक शक्तिशालियों के भी क्षण आते हैं जब वे थक जाते हैं।


मनुष्यों के दिल सुंदर व्याख्याओं से नहीं हिलाए जा सकते और हिलाए जा सकते हों तो भी क्षण भर के लिए ही। यदि हमें कोई बड़ा काम करना हो, तो करके ही दिखाया जा सकता है।

नया फिर क्षण मात्र में ही पुराना हो जाता है।

जैसे अँधेरे में घिरा एक तरुण पौधा प्रकाश में आने को अपने अँगूठों से उचकता है। उसी तरह जब मृत्यु एकाएक आत्मा पर नकार का अँधेरा डालती है तो यह आत्मा रौशनी में उठने की कोशिश करती है। किस दुःख की तुलना इस अवस्था से की जा सकती है, जिसमें अँधेरा अँधेरे से बाहर निकलने का रास्ता रोकता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere