संत तुकाराम की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 29
लोभी के चित धन बैठे, कामिनि के चित काम।
माता के चित पूत बैठे, तुका के मन राम॥
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तुका बड़ो न मानूं, जिस पास बहुत दाम।
बलिहारी उस मुख की, जिस ते निकसे राम॥
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चित्त मिले तो सब मिले, नहिं तो फुकट संग।
पानी पत्थर एक ही ठोर, कोर न भीजे अंग॥
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तुका दास तिनका रे, राम भजन नित आस।
क्या बिचारे पंडित करो रे, हात पसारे आस॥
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राम-राम कह रे मन, और सुं नहिं काज।
बहुत उतारे पार आगे, राखि तुका की लाज॥
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