नींद पर उद्धरण
नींद चेतन क्रियाओं के
विश्राम की नित्यप्रति की अवस्था है। प्रस्तुत चयन में नींद के अवलंब से अपनी बात कहती कविताओं का संकलन किया गया है।

कुछ भी इतना मधुर नहीं होना चाहिए कि सुनते ही नींद आ जाए और इतना प्रेरक भी नहीं कि समझने पर वैराग्य आ जाए।

अगर एक स्त्री अकेली सोती है तो यह सभी पुरुषों के लिए शर्मनाक है। ईश्वर के पास बड़ा दिल है, लेकिन एक ऐसा भी पाप है जिसे वह माफ़ नहीं करता : अगर एक स्त्री किसी पुरुष को बिस्तर पर बुलाती है और वह नहीं जाता।

अनिद्रा के रोगी का अंतिम आश्रय सोई हुई दुनिया से श्रेष्ठता की भावना है।

इस संसार में मनुष्य चैन की नींद नहीं सो सकता। कई बार पलकों तक आई नींद भी गायब हो जाती है।

आपको विश्वास करने की आवश्यकता है कि आप फिर से सो सकते हैं।

नींद कब से विश्वास का विषय बन गई?

‘गहरी’ और कच्ची नींद में भेद की तरह ही गहरे और उथले विचारों में भेद होता है।

जल्द ही हम सभी पृथ्वी के नीचे सोएँगे, हम जो औरों को कभी भी इसके ऊपर सोने नहीं देते हैं।

अपनी उपलब्धियों से आश्वस्त होना बर्फ़ में चलते हुए विश्राम करने जैसा ख़तरनाक है : आप ऊँघते-ऊँघते सो जाते हैं और नींद में ही मर जाते हैं।

बलवान के साथ विरोध रखने वाले को, साधन-हीन दुर्बल मनुष्य को, जिसका सब कुछ हरण कर लिया गया है उसको, कामी को तथा चोर को रात में नींद नहीं आती।

मैं सवाल-जवाब करता रहता हूँ, जब तक नींद नहीं आ जाए।

भगवती महामाया का निद्रा-रूप बड़ा शामक होता है। वह शरीर और मन की थकान पर सुधालेप करता है। वह जीवनी शक्ति को सहलावा देता है और प्राणों को नए सिरे से ताज़गी देता है।

निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।

निद्रा और भोजन ईश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए, आवश्यक शक्ति को पुनः पाने के लिए, हैं। मूर्ख लोग इन्हें ही साध्य मानते हैं।

वास्तव में जिसे किसी प्रकार की आशा नहीं है, वही सुख से सोता है। आशा का न होना ही परम सुख है।

प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति के नेत्र में चिंता जागती रहती है और जहाँ चिंता रहती है वहाँ निद्रा कभी नहीं आएगी।

यह निद्रा नेत्रों पर टिकी हुई, ललाट प्रदेश से उतरकर उसी प्रकार मुझे सता रही है, जैसे अदृश्य और चंचल वृद्धावस्था मनुष्य की शक्ति को पराजित करके बढ़ती जाती है।

अनासक्ति की एक परीक्षा है कि मनुष्य रामनाम लेकर सोने के समय एक क्षण में सो सकता है।

जो मनुष्य शोक से आतुर हो, अमर्ष से भरा हुआ, नाना प्रकार के कार्यों की चिंता कर रहा हो अथवा किसी कामना में आसक्त हो, उसे नींद कैसे आ सकती है?

भय, प्रीति और शोक में मनुष्य निद्रा से पीड़ित नहीं होता है।

लौकिक प्रेम में उज्ज्वलता नहीं होती जिस प्रकार अधजली अग्नि में शोभा नहीं होती। प्रेमी तो ऐसा होना चाहिए कि प्रत्येक वर्ष, प्रत्येक मास व रात-दिन न विश्राम करे, न चैन करे, न उसे नींद आवे।

प्रियतम न आवे तो निद्रा नहीं आती, और अगर आ भी जाए तब भी नहीं आती। इनके मध्य में मेरे ये नेत्र असह्य दुःख से पीड़ित हैं।

यदि अधिक भोजन किया जाए तो वह प्राणवायु और अपान वायु में बाधक होता है, आलस्य और नींद लाता है तथा पराक्रम को नष्ट करता है।

सोता हुआ व्यक्ति क्या नहीं देखता है?

मैं सवाल-जवाब करता रहता हूँ, जब तक नींद नहीं आ जाए।

सोते हुए इन सात प्राणियों को जगा देना उचित है—विद्यार्थी, सेवक, यात्री, भूखा, भयभीत, भांडार-अधिकारी और द्वारपाल। सोए हुए इन सात प्राणियों को जगा देना उचित नहीं है—सर्प, राजा, सिंह, सुअर, बालक, पराया कुत्ता और मूर्ख।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere