मिथक पर कविताएँ

मिथक शब्द मिथ या माइथॉस

का हिंदी रूपांतरण है। इसका सामान्य अर्थ लोकरूढ़ि या अनुश्रुति है। यह पुरातन को नवीन परिप्रेक्ष्य में रखते हुए सत्य की प्रतिष्ठा करता है। यह प्रतीकों पर आश्रित होता है लेकिन स्वयं प्रतीक नहीं होता है। समाज और साहित्य में मिथकों की अपनी उपयोगिता रही है। प्रस्तुत चयन में मिथकों के प्रयोग से बुनी कविताओं का संकलन किया गया है।

महाभारत

अच्युतानंद मिश्र

पुर-असरार ढोल

गाब्रियल ओकारा

‘हर की दून’ का कुत्ता

प्रियंका दुबे

आवाज़ तेरी है

राजेंद्र यादव

गोलोक यात्रा

का. मा. पणिक्कर

पार्वती-योनि

नेहा नरूका

द्रौपदी

कुलदीप कुमार

अठारह दिन

बद्री नारायण

प्योली और चिड़िया

अनिल कार्की

प्रेम

अनुजीत इक़बाल

महाकवि

त्रिभुवन

माधवी

सुमन राजे

आग

कमल जीत चौधरी

कर्मनाशा : दो

कुमार मंगलम

कर्मनाशा

कुमार मंगलम

मत्स्यगंधा

कुलदीप कुमार

तथागत की गोपा

श्रद्धा आढ़ा

आशा बलवती है राजन्

नंद चतुर्वेदी

कैसे जाएगी माँ

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

यमदूत ढूँढ़ रहे हैं माँ को

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

कटे अँगूठों की बंदनवारें

शिवमंगल सिंह 'सुमन'

विस्मय

कन्हैयालाल सेठिया

तुलसी तुमने गाया

कृष्ण मुरारी पहारिया

महामाया

उपासना झा

युद्ध

श्रीविलास सिंह

सुवरा

कुमार मंगलम

शाप के सहारे

कुलदीप कुमार

पृथ्वी के अंत की सूचना

राजेंद्र धोड़पकर

देवी

सुलोचना

सूरज जी का ब्याह

श्रद्धा आढ़ा

राजा और रानी

शिवमंगल सिद्धांतकर

रक्तबीज

चंद्रबिंद

गंगा

उद्भ्रांत

सुनो द्रोणाचार्य

मुसाफ़िर बैठा

अहिल्या

कन्हैयालाल सेठिया

दर्द

उद्भ्रांत

माधवी

कुलदीप कुमार

प्रायश्चित

सत्यम् सम्राट आचार्य

आठवाँ घोड़ा

राज्यवर्द्धन

रहस्य-4

सोमेश शुक्ल

अंत तक

नंद चतुर्वेदी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere