

जब मनुष्य अपने अंदर युद्ध करने लगता है तब वह अवश्य ही किसी योग्य होता है।

ताक़त के विरुद्ध मनुष्य का संघर्ष भूलने के विरुद्ध स्मृति का संघर्ष है।

संघर्ष में हार की कल्पना हमेशा होनी चाहिए। इसलिए अपने हार के उत्तराधिकार की तैयारी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी अपनी विजय।

संघर्ष पहाड़ की चोटियों पर नहीं, लोगों के दिलों और दिमाग़ों में शुरू और ख़त्म होता है।

हमें जिस पाप ने घेर रखा है, वह हमारा मतभेद नहीं बल्कि हमारा ओछापन है। हम शब्दों पर झगड़ा करते हैं। कई बार तो हम परछाई के लिए लड़ते हैं और मूल वस्तु को खो बैठते हैं।

आनंदमय आत्मा की उपलब्धि विकल्पात्मक विचारों और तर्कों से नहीं हो सकती।

कार्य-क्षेत्र में स्वार्थों की संघर्षस्थली में महान् आदर्शों की रक्षा करना कठिन काम है।

अहिंसा श्रद्धा और अनुभव की वस्तु है, एक सीमा से आगे तर्क की चीज़ वह नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere