अहिंसा पर उद्धरण
अहिंसा का सामान्य अर्थ
है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है। जैन धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है। जैन धर्म के मूलमंत्र में ही अहिंसा परमो धर्म: (अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है। आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के लिये जो आन्दोलन चलाया वह काफी सीमा तक अहिंसात्मक था।

धर्म कुछ संकुचित संप्रदाय नहीं है, केवल बाह्याचार नहीं है। विशाल, व्यापक धर्म है ईश्वरत्व के विषय में हमारी अचल श्रद्धा, पुनर्जन्म में अविरल श्रद्धा, सत्य और अहिंसा में हमारी संपूर्ण श्रद्धा।

स्त्री अहिंसा की मूर्ति है। अहिंसा का अर्थ है अनंत प्रेम और उसका अर्थ है कष्ट सहने की अनंत शक्ति।

हे राजेंद्र! अहिंसा, सत्य, अक्रोध, कोमलता, इंद्रियसंयम, तथा सरलता —ये धर्म के निश्चित लक्षण है।

जो बात शुद्ध अर्थशास्त्र के विरुद्ध हो, वह अहिंसा नहीं हो सकती। जिसमें परमार्थ है वही अर्थशास्त्र शुद्ध है। अहिंसा का व्यापार घाटे का व्यापार नहीं होता।
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मेरी अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है। इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। एक हिंसक व्यक्ति के लिए यह आशा की जा सकती है कि वह किसी दिन अहिंसक बन सकता है, किंतु कायर व्यक्ति के लिए ऐसी आशा कभी नहीं की जा सकती। इसीलिए मैंने इन पृष्ठों में अनेक बार कहा है कि यदि हमें अपनी, अपनी स्त्रियों की और अपने पूजास्थानों की रक्षा सहनशीलता की शक्ति द्वारा अर्थात् अहिंसा द्वारा करना नहीं आता, तो अगर हम मर्द हैं तो, हमें इन सबकी रक्षा लड़ाई द्वारा कर पाने में समर्थ होना चाहिए।

जो धर्म और अहिंसा की कसौटी पर खरा उतरे, वही धर्म है।

अहिंसा केवल बुद्धि का विषय नहीं है, यह श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि आपका विश्वास अपनी आत्मा पर नहीं है, ईश्वर और प्रार्थना पर नहीं है, तो अहिंसा आपके काम आने वाली चीज़ नहीं है।

सत्यमय बनने का एकमात्र मार्ग अहिंसा ही है।

अहिंसा कायरता के आवरण में पलने वाला क्लैब्य नहीं है। वह प्राण-विसर्जन की तैयारी में सतत जागरूक पौरुष है।

अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पशु है।


अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम संयम है, अहिंसा परम दान है तथा अहिंसा परम तप है। अहिंसा परम यज्ञ है, अहिंसा परम फल है, अहिंसा परम मित्र है तथा अहिंसा परम सुख है।

आत्मशुद्धि के बिना अहिंसा-धर्म का पालन थोथा स्वप्न ही रहेगा।
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अहिंसा और प्रेम एक ही चीज़ है।

अहिंसात्मक युद्ध में अगर थोड़े भी मर मिटने वाले लड़ाके होंगे तो वे करोड़ों की लाज रखेंगे और उनमें प्राण फूकेंगे। अगर यह मेरा स्वप्न है, तो भी मेरे लिए मधुर है।

अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है, अहिंसा परम सत्य है, क्योंकि उससे धर्म प्रवर्तित होता है।

हिंसा का अहिंसा से प्रतिशोध करने के लिए महाप्राण चाहिए।

अहिंसा श्रद्धा और अनुभव की वस्तु है, एक सीमा से आगे तर्क की चीज़ वह नहीं है।

अहिंसापूर्वक सत्य का आचरण करके आप संसार को अपने चरणों में झुका सकते हैं।

अहिंसा केवल बुद्धि का विषय नहीं है, यह श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि आपका विश्वास अपनी आत्मा पर नहीं है, ईश्वर और प्रार्थना पर नहीं है, अहिंसा आपके काम आने वाली चीज़ नहीं है।

अहिंसा परम श्रेष्ठ मानव-धर्म है, पशुबल से वह अन्नत गुना महान् और उच्च है।

अहिंसा सत्य का प्राण है। उसके बिना मनुष्य पशु है।

जो बात शुद्ध अर्थशास्त्र के विरुद्ध हो, वह अहिंसा नहीं हो सकती। जिसमें परमार्थ है वही अर्थशास्त्र शुद्ध है। अहिंसा का व्यापार घाटे का व्यापार नहीं होता।

आत्मशुद्धि के बिना अहिंसा धर्म का पालन थोथा स्वप्न ही रहेगा।

अहिंसा श्रद्धा और अनुभव की वस्तु है, एक सीमा से आगे तर्क की चीज़ वह नहीं है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere