
सतर्क रहने की क़ीमत चुकानी पड़ती है—यहाँ तक कि बेहूदगी और निराशा की स्थिति में भी।

मेरी आज चलती कहाँ है? मेरी चलती तो पंजाब न हुआ होता, न बिहार होता, न नोआखाली। आज कोई मेरी मानता नहीं। मैं बहुत छोटा आदमी हूँ। हाँ, एक दिन मैं हिंदुस्तान में बड़ा आदमी था। तब सब मेरी मानते थे, आज न तो कांग्रेस मेरी मानती है, न हिंदु और मुसलमान। कांग्रेस आज है कहाँ? वह तो तितर-बितर हो गई है। मेरा तो अरण्य-रोदन चल रहा है।

अजनबीपन प्रेम के अभाव का द्योतक है; संन्यास भविष्य की उज्ज्वलता के विषय में निराशा का परिणाम है। और अनास्था समाज के प्रतिष्ठित कहे जाने वाले लोगों के आचरणों के भोग-परायण होने का फल है। इसमें आशा का केवल एक ही स्थान है—वह है साधारण जनता का स्वस्थ मनोबल।

कर्तव्यनिष्ठ पुरुष कभी निराश नहीं होता।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere