राम पर उद्धरण
सगुण भक्ति काव्यधारा
में राम और कृष्ण दो प्रमुख अराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। राम की प्रतिष्ठा एक भावनायक और लोकनायक की है जिन्होंने संपूर्ण रूप से भारतीय जीवन को प्रभावित किया है। समकालीन सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों ने भी राम को कविता चिंतन का प्रसंग बनाया। इस चयन में राम के अवलंब से अभिव्यक्त बेहतरीन दोहों और कविताओं का संकलन किया गया है।

आश्चर्य है, वैद्य मरते हैं, डॉक्टर मरते हैं, उनके पीछे हम भटकते हैं। लेकिन राम जो मरता नहीं है, हमेशा ज़िंदा रहता है और अचूक वैद्य है, उसे हम भूल जाते हैं।

हृदय में निर्गुण ब्रह्म का ध्यान, नेत्रों के सामने सगुण रूप की सुंदर झाँकी और जीभ से सुंदर राम नाम का जप करना। यह ऐसा है मानो सोने की सुंदर डिबिया में मनोहर रत्न सुशोभित हो।

करोड़ों हिंदुस्तानियों ने, युग-युगांतर के अंतर में, हज़ारों बरस में राम, कृष्ण और शिव को बनाया। उनमें अपनी हँसी और सपने के रंग भरे और तब राम और कृष्ण और शिव जैसी चीज़ें सामने हैं।

जो अपने भीतर दिव्य ज्योति जगाने को तड़प रहा हो उसे प्रार्थना का आसरा लेना चाहिए। परंतु प्रार्थना शब्दों या कानों का व्यायाम मात्र नहीं है, ख़ाली मंत्र जाप नहीं है। आप कितना ही राम नाम जपिए, अगर उससे आत्मा में भावसंचार नहीं होता तो वह व्यर्थ है। प्रार्थना में शब्दहीन, हृदय, हृदयहीन शब्दों से अच्छा होता है। प्रार्थना स्पष्ट रूप से आत्मा की व्याकुलता की प्रतिक्रिया होनी चाहिए।

अंतर्यामी ईश्वर से भी बड़े बहिर्गत साकार राम हैं,क्योंकि जिस प्रकार कुछ ही समय पूर्व व्यापी गो अपने बच्चे का शब्द सुनते ही स्तनों में दूध उतार दौड़ी आती है, उसी प्रकार वे भी नाम लेते ही दौड़े आते हैं। तुलसीदास तो अपनी समझ की बात कहता है, ऐसी बावली बातें दूसरे लोगों से कहे जाने योग्य नहीं हुआ करती, प्रह्लाद के प्रतिज्ञा करने पर उसके लिए प्रभु पत्थर से ही प्रकट हो गए, हृदय से नहीं।

ग़ुलाम का न दीन है न धर्म है, ग़ुलाम के न रहीम है, न राम हैं।

वाणी से राम नाम लेते हुए यदि मन विषय की ओर दौड़े तो इसे भगवान का स्मरण नहीं वरन् विस्मरण समझना चाहिए।

राम-भक्ति अपने में एक साम्राज्य के समान है। जो इस साम्राज्य के अधिकारी होते हैं, उनके दर्शन मात्र से ब्रह्मानंद की प्राप्ति हो जाती है। परोक्ष रूप से प्राप्त आनंद ही इतना लोकोत्तर है, तो फिर उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति कैसी होती है, इसका वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं है। उसे केवल अनुभव से जाना जा सकता है। कोलाहल से भरा हुआ यह संसार, ये तीनों लोक, ईश्वर की लीला के परिणाम मात्र हैं। इस मायामय संसार का सनातन सत्य केवल राम-भक्ति में पाया जा सकता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere