
यदि मातृभूमि के कल्याण के लिए मुझे जीवन भर कारागार में रहना पड़े, तब भी मैं अपना क़दम पीछे नहीं हटाऊँगा।

हमारी जन्मभूमि, धर्मभूमि, गौरवभूमि! तेरे लिए हमारे पूर्वजों ने मृत्यु का वरण किया। हे मातृभूमि! हम भविष्य के लिए तुझे अपना मस्तक, हृदय और हाथ अर्पित करते हैं।

तीस बरस से भारत से गए हुए एक मित्र जब पहली बार मुझे रूस में मिले, तो गद्गद् होकर कहने लगे—आपके शरीर से मुझे मातृभूमि की सुगंध आ रही है। हर एक घुमक्कड़ अपने देश की गंध ले जाता है।

ऐ भारत माता, हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो तथा राम का कर्म और वचन दो। हमें असीम मस्तिष्क और हृदय के साथ-साथ जीवन की मर्यादा से रचो।

भारत जैसी मातृभूमि पाकर कौन अभिमान नहीं करेगा? यहाँ हज़ारों चीज़ें हैं जिन पर अभिमान होना ही चाहिए।

मुझे इस देश से जन्मभूमि के समान स्नेह होता जा रहा है। यहाँ के श्यामल कुंज, घने जंगल, सरिताओं की माला पहने हुए शैल-श्रेणी, हरी-भरी वर्षा, गर्मी की चांदनी, शीतकाल की धूप और भोले कृषक तथा सरल कृषक बालिकाएँ, बाल्य-काल की सुनी हुई कहानियों की जीवित प्रतिमाएँ हैं। यह स्वप्नों का देश, यह त्याग और ज्ञान का पालना, यह प्रेम की रंगभूमि भारत-भूमि क्या भुलाई जा सकती है? कदापि नहीं। अन्य देश मनुष्यों की जन्म-भूमि हैं, यह भारत मानवता की जन्म-भूमि है।

जो देशवासी अपनी मातृभूमि की गुरुता को भली भाँति समझ लें, उनमें धर्मवेद और वर्णवेद रहते हुए भी एकता का अभाव नहीं पाया जाएगा।

मेरी देशभक्ति वर्जनशील भी है और ग्रहणशील भी। वर्जनशील इस अर्थ में है कि मैं संपूर्ण नम्रता के साथ अपना ध्यान केवल अपनी जन्मभूमि की सेवा में लगाता हूँ और ग्रहणशील इस अर्थ में है कि मेरी सेवा में स्पर्धा या विरोध का भाव बिल्कुल नहीं है।

मातृभूमि का अभिमान पाप नहीं है, यदि वह दुरभिमान नहीं हो।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere