
तुम्हारे इन अट्टहासों के कारण हज़ारों आँखें आँसुओं से भरी हुई हैं।

जब तक मेरे पास दो कोटों के होते हुए कोई व्यक्ति बिना कोट के रहेगा तब तक मैं भी इस संसार में निरंतर होते रहने वाले एक पाप का भागीदार बना रहूँगा।

जगत् में प्रायः धनवानों में खाने और पचाने की शक्ति नहीं रहती है और दरिद्रों के पेट में काठ भी पच जाता है।

यह पुत्र-स्नेह धनी तथा निर्धन के लिए समान रूप से सर्वस्व धन है। यह चंदन तथा ख़श से भिन्न हृदय का शीतल लेप है।

धनी हो या दरिद्र, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष (जैसा भी हो), मित्र परम गति है।

क़ानून निर्धन को पीसते हैं और धनवान क़ानून पर शासन करते हैं।

विद्वान्, शूरवीर, धनी, धर्मनिष्ठ, स्वामी, तपस्वी, सत्यवादी तथा बुद्धिमान मनुष्य ही प्रजा की रक्षा करते हैं।

जिनका धन समान है, जिनकी विद्या एक सी है, उन्हीं में विवाह और मंत्री का संबंध हो सकता है। धनवान और निर्धन में कभी मित्रता नहीं हो सकती।

जिस धनी पुरुष का जन्म याचक जन की इच्छा को पूर्ण करने के लिए नहीं है, उस पुरुष से ही यह पृथ्वी अत्यंत भार वाली है, न कि पेड़ों या पर्वतों या समुद्रों से।

जिसके पास भगवद्-भक्ति, भगवद्-प्रेम है—वही इस संसार में धनी है। ऐसे व्यक्ति के समक्ष महाराजाधिराज भी दीन भिक्षुक के समान है।

जब मैं गहनों से लदे हुए उन अमीर-उमरावों को भारत के लाखों ग़रीब आदमियों से मिलाता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं इन अमीरों से कहूँ", "जब तक आप अपने आप ये ज़ेवरात नहीं उतार देते और उन्हें ग़रीबों की धरोहर मान कर नहीं चलते तब तक भारत का कल्याण नहीं होता।"

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere