पिता पर उद्धरण
पारिवारिक इकाई में पिता
एक विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करता है और यही कारण है कि जीवन-प्रसंगों की अभिव्यक्ति में वह एक मज़बूत टेक की तरह अपनी उपस्थिति जताता रहता है। यहाँ प्रस्तुत है—पिता विषयक कविताओं का एक विशेष संकलन।

स्त्रियों को तर्कसंगत प्राणी और स्वतंत्र नागरिक बनाएँ, और अगर पुरुष पतियों और पिता के कर्त्तव्यों की उपेक्षा नहीं करते हैं तो वे जल्द ही अच्छी पत्नियाँ बन जाएँगी।

सहस्रों माता-पिता और सैकड़ों पुत्र व पत्नियाँ युग-युग में हुए। सदैव के लिए वे किसके हुए और आप किसके हैं?

माता-पिता से वंचित हो जाना—क्या स्वतंत्रता वहीं से शुरू होती है?

जैसे-जैसे हम ज्ञान पाते हैं, हम अपने पिताओं को मूर्ख समझते हैं। निस्संदेह हमारे अधिक बुद्धिमान पुत्र हमें भी ऐसा ही समझेंगे।

मित्र तो वही है जिस पर पिता की भाँति विश्वास किया जा सके, दूसरे तो साथी मात्र हैं।

अपनी शक्ति के अनुसार उत्तम खाद्य पदार्थ देने, अच्छे बिछौने पर सुलाने, उबटन आदि लगाने, सदा प्रिय बोलने तथा पालन-पोषण करने और सर्वदा स्नेहपूर्ण व्यवहार के द्वारा माता-पिता पुत्र के प्रति जो उपकार करते हैं, उसका बदला सरलता से नहीं चुकाया जा सकता।

बड़ा भाई, पिता तथा जो विद्या देता है, वह गुरु—ये तीनों धर्म-मार्ग पर स्थित रहने वाले पुरुषों के लिए पिता के तुल्य माननीय हैं।

जो माता-पिता की आज्ञा मानता है, उनका हित चाहता है, उनके अनुकूल चलता है, तथा माता-पिता के प्रति पुत्रोचित व्यवहार करता है, वास्तव में वही पुत्र है।

स्वामी का कार्य, गुरु भक्ति, पिता के आदेश का पालन, यही विष्णु की महापूजा है।

माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक हैं। पिता आकाश से भी ऊँचा है।

पुत्र को सभा में अग्रिम स्थान में बैठने योग्य बनाना पिता का सबसे बड़ा उपकार होगा।

ज्ञान की प्रथम गुरु माता है। कर्म का प्रथम गुरु पिता है। प्रेम का प्रथम गुरु स्त्री है और कर्त्तव्य का प्रथम गुरु संतान है।

जो माता पिता बिना अनुमति के अपने बालकों के पत्र पढ़ने की अच्छा रखते हैं, वे माता-पिता नहीं बल्कि ज़ालिम हैं।

जिस तरह माँ अपने बेटे को हमेशा दुबला ही समझती है, उसी तरह बाप भी बेटे को हमेशा नादान समझा करता है। यह उनकी ममता है, बुरा मानने की बात नहीं है।

आप इस चराचर जगत् के पिता और गुरु से भी बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं। हे अप्रतिम प्रभाव! तीनों लोकों में आप के समान भी दूसरा कोई नहीं है, फिर अधिक श्रेष्ठ कैसे होगा?

परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है।

जो पुत्र इस लोक में दुर्गम संकट से पार लगाए अथवा मृत्यु के पश्चात् परलोक में उद्धार करे... सब प्रकार पिता को सार दे, उसे ही विद्वानों ने वास्तव में 'पुत्र' कहा है।

हे जन्मभूमि! हम उन आगामी वर्षों में अपना प्रेम और कठोर परिश्रम तुझे अर्पित करते हैं जब हम बड़े होकर अपनी जाति में पुरुषों और स्त्रियों के रूप में अपना स्थान ग्रहण करेंगे।

बाप के कुएँ में तैरना तो चाहिए, पर डूब मरना तो न चाहिए।


पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है।

मैं इस जगत् का माता, पिता, धारणकर्ता, पितामह, ज्ञेय, पवित्र वस्तु, ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद हूँ। मैं अंतिम गति, पोषणकर्ता, स्वामी, साक्षी, निवासस्थान, शरण जाने योग्य, मित्र, उत्पत्तिकर्ता, लयकर्ता, मध्य की अवस्थिति, भंडार और अविनाशी बीज हूँ।

गौरव में उपाध्याय दस आचार्यों से बड़ा, पिता दस उपाध्यायों से बड़ा और माता दस पिताओं से बड़ी है। माता अपने गौरव से सभी पृथ्वी को भी तिरस्कृत कर देती है। अतः माता के समान कोई दूसरा गुरु नहीं है।

मैं माता पिता की तुलना में निंदक का अधिक स्नेह मानता हूँ। विचार करके देखिए—माता पिता तो हमारे मलमूत्र को हाथ से धोते हैं, किंतु निंदक तो जीभ से हमारे मलमूत्र को धोते हैं।

यौवन का आरंभ होते ही कन्याओं के पिता संताप-अग्नि के ईंधन बन जाते हैं।


रथ के जिस जुए को बड़ा बैल खींचता है, उसे पिताजी द्वारा छोटे से बछड़े के कंधे पर डालना ठीक नहीं है।

पिता के प्रति पुत्र का प्रत्युपकार लोगों से यह कहलाना ही है कि न मालूम इसके पिता ने ऐसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कैसा तप किया।

हम अपने माता-पिता को अपने असली अपमानों के कहीं आस-पास भी फटकने नहीं दे सकते हैं।

कायर पिता संतान को अच्छे नहीं लगते।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere