ग़लतियाँ हमेशा माफ़ की जा सकती हैं, अगर किसी में उन्हें स्वीकार करने का साहस हो।
जो स्वयं को क्षमा नहीं कर सकता वह कितना दुःखी व्यक्ति है!
हम पागल नहीं हैं। हम इंसान हैं। हम प्यार करना चाहते हैं, और प्यार करने के लिए हम जो रास्ते अपनाते हैं; उसके लिए औरों द्वारा हमें माफ़ कर देना चाहिए, क्योंकि कई रास्ते हैं और अँधियारे हैं, और हम अपनी यात्रा में उत्साही और क्रूर हैं।
यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और निर्लोभता—ये धर्म के आठ प्रकार के मार्ग बताए गए हैं। इनमें से पहले चारों का तो कोई दंभ के लिए भी सेवन कर सकता है, परंतु अंतिम चार तो जो महात्मा नहीं है, उनमें रह ही नहीं सकते।
दया और क्षमा भी मानव के धर्म हैं, तो शक्तिवान होना और उपयुक्त समय पर देश और धर्म की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करना भी धर्म है।
यहाँ ऐसे कुछ लोग हैं जो आपके किए को माफ़ कर देते हैं, और कुछ ऐसे हैं जो इसकी परवाह भी नहीं करते हैं।
हर कोई सोचता है कि क्षमा करना महान विचार है, जब तक कि उसके पास क्षमा करने के लिए कुछ न हो।
ईसाई होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा कईसाई होने का मतलब अक्षम्य को क्षमा करना है, क्योंकि भगवान ने आपमें अक्षम्य को क्षमा कर दिया है।
जब कोई श्रेष्ठता का दावा करता है और वह मानक से नीचे गिर जाता है तो उसे कोई माफ़ी नहीं मिलती।
हत्यारों को क्षमा करके दया हत्या ही करती है।
लोगों को दूसरों के सही होने की तुलना में ग़लत होने पर क्षमा करना कहीं अधिक आसान लगता है।
जो शिष्य होकर भी शिष्योचित बर्ताव नहीं करता, अपना हित चाहने वाले गुरु को उसकी धृष्टता क्षमा नहीं करनी चाहिए।
वह सबको शरण देने वाला है, दाता और सहायक है। अपराधों को क्षमा करने वाला है, जीविका देने वाला है और चित्त को प्रसन्न करने वाला है।
मूर्ख मनुष्य विद्वानों को गाली और निंदा से कष्ट पहुँचाते हैं। गाली देने वाला पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
मित्र को क्षमा करने की अपेक्षा शत्रु को क्षमा कर देना सरल है।
क्षमाशील पुरुषों में एक ही दोष का आरोप होता है। दूसरे की तो संभावना ही नहीं है। दोष यह है कि क्षमाशील को लोग असमर्थ समझ लेते हैं किंतु क्षमाशील का वह दोष नहीं मानना चाहिए क्योंकि क्षमा में बड़ा बल है।
विश्वास, उपकार, सुख-दुःख में समान भाव, क्षमा प्रेम—यही सज्जनों की मित्रता है।
क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है।
क्षमा और उदारता वही सच्ची है, जहाँ स्वार्थ की भी बलि हो।
छोटी प्रकृति के लोग संपत्ति के कण को भी पाकर तराज़ू के समान ऊपर को उठ जाते हैं।
जिस मनुष्य के हाथ में क्षमारूपी शस्त्र हो, उसका दुष्ट क्या बिगाड़ सकता है? यदि दावाग्नि में तृण न पड़े, तो वह स्वयं ही बुझ जाती है।
यदि न तो तुम्हें शत्रु हानि पहुँचा सकते हैं और न प्रिय मित्र, यदि सभी मनुष्यों का तुम्हारी दृष्टि में महत्त्व है परंतु किसी का भी अधिक नहीं, यदि तुम क्षमा रहित मिनट के साठ सेकंडों को भली प्रकार चली दूर के अनुरूप भर सकते हो, तो यह पृथ्वी और इसकी प्रत्येक वस्तु तुम्हारी ही है और मेरे पुत्र! इससे भी बड़ी यह है कि तब तुम सच्चे मनुष्य बन जाओगे।
भगवान भले ही पापों को क्षमा कर दे किंतु स्नायु-संस्था हमें किसी भी भूल के लिए क्षमा नहीं करती।
वत्स! जो सदा क्षमा ही करता है, उसे अनेक दोष प्राप्त होते हैं उसके भृत्य, शत्रु तथा उदासीन सभी उसका तिरस्कार करते हैं।
संसार में ऐसे अपराध कम नहीं हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें।
क्षमा ही जिसकी जटा है, धैर्य ही जिसका गहरा मूल है, चरित्र ही जिसके फूल हैं, स्मृति व बुद्धि ही जिसकी शाखाएँ हैं, और जो धर्म रूपी फल देता है, ऐसा यह वर्धमान ज्ञान-वृक्ष उन्मूलन योग्य नहीं है।
सब स्थानों पर क्षमा की एक सीमा होती है।
दुष्ट पुरुषों का बल है हिंसा। राजाओं का बल है दंड देना। स्त्रियों का बल है सेवा और गुणवानों का बल है क्षमा।
भूल करना मानवीय है, क्षमा करना दैवी है।
नियति तो क्षमा नहीं करती, उसका विधान तो दंड है।
दंड देने की शक्ति होने पर भी दंड न देना सच्ची क्षमा है।
क्षमा-प्रार्थना से अयोग्यता में संशोधन नहीं हो सकता, केवल उसे स्वीकार किया जा सकता है। अनुदार लोग उसे विनय नहीं समझते, आत्मग्लानि ही समझते हैं।
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संबंधित विषय : रवींद्रनाथ ठाकुर
क्षमा करना अच्छा है। भूल जाना सर्वोत्तम है।
क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है तथा क्षमा शास्त्र है।
राजा न्याय कर सकता है, परंतु ब्राह्मण क्षमा कर सकता है।
वास्तव में क्षमा मानवीय भावों में सर्वोपरि है। दया का स्थान इतना ऊँचा नहीं। दया वह दाना है जो पोली धरती पर उगता है। इसके प्रतिकूल क्षमा वह दाना है जो काँटों में उगता है। दया वह धारा है, जो समतल भूमि पर बहती है, क्षमा कंकड़ों और चट्टानों में बहने वाली धारा है। दया का मार्ग सीधा और सरल है, क्षमा का मार्ग टेढ़ा और कठिन है।
क्षमा का फल क्या सिर्फ़ अपराधी को ही मिलता है? जो क्षमा करता है, उसे क्या कुछ भी नहीं मिलता?
माफ़ करना और भूल जाना हमेशा संभव है।
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संबंधित विषय : महात्मा गांधी
यह मैं नहीं मानता कि मन ही मन क्षमा चाहने की अपेक्षा प्रकट रूप से क्षमा माँगना ही हर हालत में सबसे बड़ी बात है।
कोई भी क्यों न हो, जिसका कार्य-कारण हमें नहीं मालूम, उसे अगर हम क्षमा न भी कर सकें, तो उसका विचार करके कम-से-कम उसे अपराधी तो नहीं ठहरावें।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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