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मोक्ष पर उद्धरण

भारतीय दर्शन में दुखों

की आत्यंतिक निवृत्ति को मोक्ष कहा गया है। मोक्ष प्राप्ति को जीवन का अंतिम ध्येय माना गया है ,जहाँ जीव जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा लेता है। अद्वैत दर्शन में ‘अविद्या: निवृत्ति: एव मोक्ष:’ की बात कही गई है। ज्ञान और भक्ति दोनों को ही मोक्ष का उपाय माना गया है। बौद्ध और जैन जैसी अवैदिक परंपराओं में भी मोक्ष की अवधारणा पाई जाती है। बुद्ध ने इसे ‘निर्वाण’ कहा है।

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मौन से समृद्ध कुछ नहीं है। मौन में समस्त कोलाहल मोक्ष पा जाते हैं।

रघुवीर चौधरी
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धनी हो या दरिद्र, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष (जैसा भी हो), मित्र परम गति है।

वाल्मीकि
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जिन्हें मुक्ति की इच्छा नहीं, ऐसे महान भक्तों को प्रणाम है।

माधवदेव
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मोक्ष ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है।

महात्मा गांधी
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हमें चाहिए मुक्ति, जन्म भारत में पावैं।

वियोगी हरि
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सुवासना और दुर्वासना—ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं।

माधवदेव
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यह समझकर कि शरीर बड़ा धोखेबाज़ है, इसी क्षण मोक्ष की तैयारी करें।

महात्मा गांधी
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