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जंगल पर उद्धरण

जंगल एक आदिम उपस्थिति,

एक पारितंत्र और जीवन के स्रोत के साथ ही एक प्रवृत्ति का प्रतिनिधि है। इस चयन में जंगल विषयक कविताओं का संग्रह किया गया है।

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मैं कोई मतदान नहीं करूँगा। कर नहीं चुकाऊँगा। किसी पंक्ति में खड़े होकर क्यू नहीं बनाऊँगा। कोई उपाधि, सम्मान, लाइसेंस, बीमा, पासपोर्ट, परमिट, पद या पोर्टफ़ोलियों नहीं लूँगा। मैं सामाजिक सुरक्षा नहीं चाहता। बहीखाते ढोने और औरों के लिए कंधे पर बंदूक़ें ढोने और गोली चलाने के बजाय मैं जंगलों और गुफाओं में चला जाऊँगा…।

राजकमल चौधरी
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आप भेड़िए को चाहे कितना भी खिला दें, लेकिन वह हमेशा जंगल पर निर्भर रहता है।

मरीना त्स्वेतायेवा
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जैसे जंगल में एक हाथी के पीछे बहुत से हाथी चले आते हैं, उसी प्रकार धन से ही धन बँधा चला आता है।

वेदव्यास
  • संबंधित विषय : धन
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दुर्गम वनों में आनंद होता है और एकाकी समुद्र तट पर हर्षोन्माद। गहरे समुद्र के तट के जनशून्य स्थान में भी समाज होता है और सागर के गर्जन में संगीत। मैं मानव को कम प्रेम नहीं करता, पर प्रकृति को अधिक प्रेम करता हूँ।

लॉर्ड बायरन
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मुझे घोर अँधेरे और घनेरे वन प्रिय हैं, किंतु मुझे वायदे पूरे करने हैं। मुझे सोने से पहले मीलों दूर जाना है।

रॉबर्ट फ्रॉस्ट
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कोई कितना ही शुद्ध और उद्योगी क्यों हो, लोग उस पर दोषारोपण कर ही देते हैं। अपने धार्मिक कर्मों में लगे हुए वनवासी मुनि के भी शत्रु, मित्र और उदासीन ये तीन पक्ष पैदा हो जाते हैं।

वेदव्यास
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जंगल में रहने वाले पक्षी की उपेक्षा पिंजड़े का पक्षी ही अधिक फड़फड़ाता है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
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आख़िर ईश्वर है क्या? एक शाश्वत बालक जो शाश्वत उपवन में शाश्वत क्रीड़ा में लगा हुआ है।

श्री अरविंद
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राजन्! जो उत्तम व्यवहार करने वाले सत्पुरुषों के साथ असद् व्यवहार करता है, वह कुल्हाड़ी से जंगल की भाँति उस दुर्व्यवहार से अपने आपको ही काटता है।

वेदव्यास

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere