भाई पर उद्धरण
एक सामाजिक और पारिवारिक
प्राणी के रूप में कवि की अभिव्यक्ति में पारिवारिक संबंधों की धूप-छाँह, घर में गुज़रे पलों की स्मृतियाँ और दंश, नाते-रिश्तेदार आदि का उतरना भी बेहद स्वाभाविक है। इस चयन में प्रस्तुत भाई विषयक कविताओं में इस अनूठे संबंध की ऊष्मा और ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है।

बड़ा भाई, पिता तथा जो विद्या देता है, वह गुरु—ये तीनों धर्म-मार्ग पर स्थित रहने वाले पुरुषों के लिए पिता के तुल्य माननीय हैं।

दोषों को भूलकर भाइयों पर केवल स्नेह करना चाहिए, बंधुओं से प्रेम स्थापित करना, लोक-परलोक दोनों के लिए लाभदायक होता है।


व्यवहार में हम 'भाई' के अर्थ का कितना ही दुरुपयोग करें, लेकिन उसकी भावना में जो पवित्रता है, वह हमारी कालिमा से कभी मलिन नहीं होती।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere