कृष्ण पर उद्धरण
सगुण भक्ति काव्यधारा
में राम और कृष्ण दो प्रमुख अराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इसमें कृष्ण बहुआयामी और गरिमामय व्यक्तित्व द्वारा मानवता को एक तागे से जोड़ने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सगुण कवियों ने प्रेम और हरि को अभेद्य माना, प्रेम कृष्ण का रूप है और स्वयं कृष्ण प्रेम-स्वरुप हैं। प्रस्तुत चयन में भारतीय संस्कृति की पूर्णता के आदर्श कृष्ण के बेहतरीन दोहों और कविताओं का संकलन किया गया है।

जब हरि मुरली अधर धरत।
थिर चर, चर थिर, पवन थकित रहैं, जमुना-जल न बहत॥

करोड़ों हिंदुस्तानियों ने, युग-युगांतर के अंतर में, हज़ारों बरस में राम, कृष्ण और शिव को बनाया। उनमें अपनी हँसी और सपने के रंग भरे और तब राम और कृष्ण और शिव जैसी चीज़ें सामने हैं।

'सत्संग' नामक देश में 'भक्ति' नाम का नगर है। उसमें जाकर 'प्रेम' की गली पूछना। विरह-ताप-रूपी पहरेदार से मिलकर महल में घुसना और सेवारूपी सीढ़ी पर चढ़कर समीप पहुँच जाना। फिर दीनता के पात्र में अपने मन की मणि को रखकर उसे भगवान् को भेंट चढ़ा देना। अहं तथा घमंड के भावों को न्योछावर कर तुम श्रीकृष्ण का वरण करना।

उग्र तप, ज्ञान, गुण विकास, यज्ञ, योग, दान, पुण्य आदि सबका प्रयोजन ही क्या है जब तक सब जगत् के निज आत्मा, मोक्ष-सुख देने वाले इष्ट देव कृष्ण के चरणों में भक्ति नहीं?

उसका जो भी कुछ नाम हो, शिव हो, केशव हो, जिन हो अथवा कमलजनाथ हो—मुझ अबला को भव-रोग से मुक्त कर दे।

हे दशावतारधारी कृष्ण! तुम मत्स्यरूप में वेदों का उद्धार करते हो। कूर्म रूप में जगत् को धारण करते हो। नृसिंह रूप में दैत्य को नष्ट करते हो। वामन रूप में बलि को छलते हो। परशुराम रूप में क्षत्रियों का नाश करते हो। रामचन्द्र रूप में रावण को जीतते हो। बलराम रूप में हल को धारण करते हो। बुद्ध रूप में करुणा को वितरित करते हो, और कलि रूप में म्लेच्छों को नष्ट करते हो। तुम्हें नमस्कार है।