
हमारे समाज में उपकार भी इस प्रकार किए जाते हैं कि स्वार्थ अधिक निर्दोष लगता है।

जो भी किसी निर्दोष कृति को देखना चाहता है, वह ऐसी वस्तु की बात सोचता है जो न तो कभी थी, न है और न कभी होगी।

शत्रुओं के द्वारा जो सच्चे न हों ऐसे छोटे छोटे दोषों का आरोपण सज्जनों की निर्दोषता को सूचित करता है क्योंकि यदि सत्य दोष होगा तो झूठा दोष आरोपण करने के लिए कोई उद्योग नहीं करेगा।

निष्कलंक का जीवन ही जीवन है। यशहीन का जीवन मरण-तुल्य है।

निर्दोष व्यक्तियों का संबंध न छोड़ो! दुख के समय जिसने सहायता की हो उसकी मित्रता को न त्यागो।

धनी हो या दरिद्र, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष (जैसा भी हो), मित्र परम गति है।

अलग-अलग बिखरे हुए शब्द तभी तक निर्दोष रह पाते हैं जब तक कवि उन्हें अपनी जिह्वा रूपी सुई से गूँथ नहीं देता (अर्थात् काव्य का सर्वथा निर्दोष होना असंभव है)।

उनको देखते समय उनके दोष नहीं दिखते, और उनको देखते समय उनके निर्दोष व्यवहार नहीं दिखते।

निर्दोष युवावस्था एक अनमोल निधि है।

यह अधिक अच्छा है कि दस दोषी व्यक्ति बच जाए अपेक्षाकृत इसके कि एक निर्दोष दंडित हो।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere