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जंगल पर कविताएँ

जंगल एक आदिम उपस्थिति,

एक पारितंत्र और जीवन के स्रोत के साथ ही एक प्रवृत्ति का प्रतिनिधि है। इस चयन में जंगल विषयक कविताओं का संग्रह किया गया है।

परवाह

जसिंता केरकेट्टा

सतपुड़ा के जंगल

भवानीप्रसाद मिश्र

प्रेमपत्र

सुधांशु फ़िरदौस

पहाड़ पर लालटेन

मंगलेश डबराल

जंगल

लक्ष्मीनारायण पयोधि

पेड़ों का अंतर्मन

हेमंत देवलेकर

वह चिड़िया जो

केदारनाथ अग्रवाल

जंगल में

अन्ना अख्मातोवा

वन मैंने लूट डाले

एमिली डिकिन्सन

मन को भाने वाला यह वन

रॉबर्ट फ्रॉस्ट

एक झील जंगल में

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

जंगल बनाम जंगल

कुमार विकल

वन देवता मृत है

एज़रा पाउंड

वन

गुलाब नबी फ़िराक़

चिड़िया को

सुमित त्रिपाठी

पृष्ठ के पक्ष में

अमिताभ चौधरी

हँसी-ख़ुशी

शैलेंद्र साहू

युवा जंगल

अशोक वाजपेयी

अभयारण्य

अजंता देव

बढ़ई का बेटा

कृष्ण कल्पित

उस दिन का जंगल

लीलाधर जगूड़ी

जंगल की आग

शुभम नेगी

नया करती हुई

नंदकिशोर आचार्य

बाघ

ललन चतुर्वेदी

जंगल की कविता

कैलाश वाजपेयी

साहेब! कैसे करोगे ख़ारिज?

जसिंता केरकेट्टा

जंगलों का गीत

मान्युएल बान्दैरा

प्रदक्षिणा है यह

शिरीष ढोबले

नदी का विलाप

आलोक आज़ाद

चंद्रोदय

श्रीनरेश मेहता

संकेत

संजय चतुर्वेदी

यह अरण्य

राजेन्द्र शाह

जंगल

अनुभव

टुकड़े में जंगल

प्रकृति करगेती

लिखूँगा कविता

विजय सिंह

दिन कोई जंगल है

पारुल पुखराज

जंगली

दामिनी यादव

सिंह-तंत्र

महाप्रकाश

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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