माधवदेव की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 2

जिन्हें मुक्ति की इच्छा नहीं, ऐसे महान भक्तों को प्रणाम है।

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हे नारायण! तुम नित्य और निरंजन (पवित्र) हो। मैं भी तुम्हारा अंश हूँ।

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