भूख पर उद्धरण
भूख भोजन की इच्छा प्रकट
करता शारीरिक वेग है। सामाजिक संदर्भों में यह एक विद्रूपता है जो व्याप्त गहरी आर्थिक असमानता की सूचना देती है। प्रस्तुत चयन में भूख के विभिन्न संदर्भों का उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।

भूख-प्यास से इस देह को तड़पाना नहीं। ज्यों ही बुझने लगे, त्योंही इसे सँभालना। तेरे व्रत-उपवास और साज-सिंगार पर धिक्कार। उपकार कर यही तेरा परम कर्तव्य-कर्म है।

मूढ़ को अधिक संपत्ति प्राप्त हो तो उसके अपने तो भूखे रहेंगे और दूसरे लाभांवित होंगे।

सुख रूपी अमृत का पान करते हुए पूँजीपति वीर महलों में रमते हैं। किंतु उनके लिए जो स्वर्ग रचते हैं, वे कहीं गिरे-पड़े भूखों मरते हैं।

भूख धर्मज्ञान को विलुप्त कर देती है, धैर्य हर लेती है तथा रस का अनुसरण करने वाली रसना सदा रसीले पदार्थों की ओर मनुष्य को खींचती रहती है।

तुम्हें क्या पता, भूख कैसी होती है? तुम्हें उसकी भय-करता का क्या पता? परंतु वहाँ मनुष्यों के पीछे-पीछे भूत की तरह लगी फिरती है। उन्हें रोटी मिलने की कोई आशा नहीं होती। अस्तु, यह भूख उनकी आत्मा को ही खा जाती है। उनके मुँह पर से मनुष्यता के चिह्न नष्ट हो जाते हैं। वे जीते नहीं। भूख और आवश्यकताओं से धीरे-धीरे घुलते है।

जबकि मनुष्य भूखा हो या मर रहा हो, उस वक़्त संस्कृति या भगवान के विषय में बात करना बेवक़ूफ़ी है, और किसी चीज़ के बारे में बात करने से पहले, आदमी को उसकी ज़िंदगी की आम ज़रूरत की चीज़ें मिलनी चाहिए। यहाँ अर्थशास्त्र आता है।

प्राणियों की लज्जा, स्नेह, स्वर, माधुर्य, बुद्धि, यौवन, श्री, प्रियासंग, स्वजनों की ममता, दुःखहानि, विलास (सुख की अभिलाषा) और धर्म, शास्त्र, देवता तथा गुरुजनों के प्रति भक्ति, पवित्रता तथा आचार की चिंता, सब कुछ जठराग्नि के शांत होने पर ही संभव है।

भूखा मनुष्य क्या पाप नहीं करता? दुर्बल (भूख से व्याकुल) मनुष्य निर्दयी हो जाते हैं।

दरिद्र पुरुष सदा स्वादिष्ट भोजन ही करते हैं, क्योंकि भूख उनके भोजन में स्वाद उत्पन्न कर देती है और वह भूख धनियों के लिए सर्वथा दुर्लभ है।

करोड़ों भूखे लोग आज एक ही कविता की माँग कर रहे हैं—भूख मिटाने वाली भोजन रूपी कविता की। लेकिन वह उन्हें कोई नहीं दे पा रहा है। उन्हें अपना भोजन स्वयं प्राप्त करना है और वे प्राप्त कर सकते हैं सिर्फ़ अपने भाल से पसीना बहाकर।

विद्वान होने पर भी जो आजीविका के साधन से रहित है और दुर्बल तथा दुखी है, ऐसे व्यक्ति की भूख मिटाने वाले के समान (पुण्यात्मा) पुरुष नहीं हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere