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समझना पर उद्धरण

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मनुष्य जितना समझता है, उससे कहीं अधिक जानता है।

अल्फ़्रेड एडलर
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इसमें क्या ग़लत है कि अगर दुनिया में कोई आदमी ऐसा हो जिसे आपको समझने की कोशिश करना अच्छा लगता है?

हारुकी मुराकामी
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स्त्री को कौन समझ सकता है।

विलियम शेक्सपियर
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सच, कर्म और चरित्र को क्रांति के बाद की चीज़ नहीं समझना चाहिए। इन्हें तो क्रांति के साथ-साथ चलना चाहिए।

राममनोहर लोहिया
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तत्त्वज्ञ पुरुष को चाहिए कि वह अपमान को अमृत के समान समझकर उससे संतुष्ट हो और विद्वान मनुष्य सम्मान को विष के तुल्य समझकर उससे सदा डरता रहे।

वेदव्यास
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क्रूर और नीच मनुष्य यदि कभी आकर नम्रता प्रकट करे तो उसे बहुत डर की बात समझना चाहिए।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल
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जिस गाँव में गुण-अवगुण को सुनने समझने वाला कोई नहीं है और जहाँ अराजकता फैली हुई है, हे राजिया! वहाँ रहना कठिन है।

कृपाराम खिड़िया
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भास, कालिदास आदि के पालन करने वाले भास्कर कोश-गृहों को समझने में कठिन वेद रूपी पर्वत से निकलकर बहनेवाली निर्मल नदियों, उन्नत उपनिषद देवताओं के मंदिरों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष वाले पौधों के खेतों, यशस्वी आर्यों के जयस्तम्भ श्रेष्ठ पुराणो! तुम्हें मेरा प्रणाम!

वल्लथोल नारायण मेनन
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पति को जो वास्तव में धर्म समझकर, परलोक की वस्तु समझकर ग्रहण कर सकी है, उसके पैरों की बेड़ी चाहे तोड़ दी और चाहे बंधी रहने दी, उसके सतीत्व की परीक्षा अपने-आप हो ही गई, समझ लो।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
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तृणतुल्य भी उपकार क्यों हो, उसके फल को समझने वाले उसे ताड़ के समान मानेंगे।

तिरुवल्लुवर
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नेत्र बोल सकते हैं और नेत्र समझ सकते हैं।

जॉर्ज चैपमैन
  • संबंधित विषय : आँख
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स्वामी पसंद-नापसंद की चीज़ नहीं है। उसे बिना कुछ विचारे मान लेना होता है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
  • संबंधित विषय : पति
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जब किसी के बारे में लिखो तो यह समझकर लिखो कि वह तुम्हारे सामने ही बैठा है और तुमसे जवाब तलब कर सकता है।

गणेश शंकर विद्यार्थी
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जब कोई व्यक्ति जानता है और दूसरों को समझा नहीं सकता, तो वह क्या करता है?

कार्सन मैक्कुलर्स
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स्वभाव, रुचि, अभ्यास, संगति, संप्रदाय और विवेक बुद्धि के न्यूनाधिक विकास के अनुसार सबको सब चीज़ें एक सी हृदयंगम नहीं होतीं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी
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मेरी डाक में आने वाले खतों में कुछ खत तो गालियों से ही भरे होते हैं। उन गालियों का तो मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता, क्योंकि मैं इन गालियों को ही स्तुति समझता हूँ, परंतु वे लोग गालियाँ इसलिए नहीं देते कि मैं उनको स्तुति समझता हूँ बल्कि इसलिए कि मैं जैसा उनकी निगाह में होना चाहिए वैसा नहीं हूँ। एक वक़्त वह था जब वे मेरी स्तुति भी करते था। इसलिए गालियाँ देना या स्तुति करना तो दुनिया का एक खेल हूँ।

महात्मा गांधी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere