थिएटर पर उद्धरण
जहाँ जीवन को ही रंगमंच
कहा गया हो और माना जाता हो कि पहली नाट्य प्रस्तुति जंगल से शिकार लिए लौटे आदिम मानवों ने वन्यजीवों के हाव-भाव-ध्वनि के साथ दी होगी, वहाँ इसके आशयों का भाषा में उतरना बेहद स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत चयन नाटक, रंगमंच, थिएटर, अभिनय, अभिनेता के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं में से किया गया है।

नाटक मनुष्य के जन्म के साथ उत्पन्न हुआ है।

नाटक में शब्दों से मोह हो जाता है। यह फ़ालतू का मोह जानलेवा हो जाता है। अभिनेता के लिए भी, निर्देशक के लिए भी, यह बात मुझे रंजीत कपूर ने बताई थी।

मैं अपने नए नाटक के पहले मंचन के लिए दो टिकट भेज रहा हूँ; एक दोस्त को ले आइए। अगर आपके पास कोई हो।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere