
किसी के शब्दों की लय में झूलना एक सुखद, लेकिन अचेतन निर्भरता हो सकती है।

मनुष्य की अचेतन क्रिया की यंत्रवत कारीगरी और यांत्रिक साधन ही आगे चलकर स्वतंत्र कलाओं में परिणत होते गए।


चैतन्य को जड़शक्ति का औद्धत्य लील जाने को व्याकुल है।

भाषा का निर्माण उसकी सजग चेतना का परिणाम नहीं, उसकी अचेतन क्रिया का अगोचर प्रयास है।

अचेतन उतना ही तुच्छ और बेतुका है जितना कि चेतन।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere