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लॉर्ड बायरन

1788 - 1824 | लंदन

लॉर्ड बायरन की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 7

मनुष्य का अंतःकरण देववाणी है।

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हम बस इतना जानते हैं कि कुछ भी नहीं जाना जा सकता।

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अपने प्रथम भावावेश में नारी अपने प्रेमी से प्रेम करती है किंतु अन्यों में वह केवल प्रेम से प्रेम करती है।

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आलोचना को छोड़कर हर व्यवसाय सीखने में मनुष्य को अपना समय लगाना चाहिए क्योंकि आलोचक तो सब बने बनाए ही हैं।

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झुकने वाला व्यक्ति तड़प सकता है और विद्रोह कर सकता है, पश्चात्ताप तो निर्बल व्यक्ति करते हैं।

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