प्रकाश पर उद्धरण
प्रकाश का संबंध हमारे
दृश्य संसार से है। प्रकाश अंधकार के प्रतिरोध की प्रतीति भी है। इस चयन में प्रकाश एवं उसके विभिन्न शब्द और अर्थ पर्यायों के साथ अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।
मुल्ला और मशालची दोनों एक ही मत के हैं। औरों को तो ये प्रकाश देते हैं और स्वयं अंधकार में फँसे रहते हैं।
ईश्वर जीवन है, सत्य है, प्रकाश है। वह प्रेम है, वह सर्वोच्च शिव है—शुभ है।
भाषा की कितनी दयनीय दरिद्रता है! सितारों की तुलना हीरे से करना!
शब्दों के ब्रह्मांड में सोलह-सोलह सूर्य प्रज्वलित रहे हैं। वहाँ कुछ भी बाधित नहीं है, सब कुछ पूर्ण है, प्रचुर है।
मृत्यु के बीच जीवन अस्तित्व बना रहता है, असत्य के बीच सत्य टिका रहता है और अंधकार के बीच प्रकाश जीवित रहता है।
मौत तारकोल-सी स्याह है, पर रंग रोशनी से भरे होते हैं। एक चित्रकार होने के नाते हरेक को रोशनी की किरणों को साथ लेकर काम करना चाहिए।
हर चीज़ में एक दरार है। इसी तरह रोशनी अंदर आती है।
यदि समग्र भाव से समस्त नारी जाति के दुःख-सुख और मंगल-अमंगल की तह में देखा जाए, तो पिता, भाई और पति की सारी हीनताएँ और सारी धोखेबाज़ियाँ क्षण भर में ही सूर्य के प्रकाश के समान आप से आप सामने आ जाती हैं।
घोर अंधकार में जिस प्रकार दीपक का प्रकाश सुशोभित होता है उसी प्रकार दुःख का अनुभव कर लेने पर सुख का आगमन आनंदप्रद होता है किंतु जो मनुष्य सुख भोग लेने के पश्चात् निर्धन होता है वह शरीर धारण करते हुए भी मृतक के समान जीवित रहता है।
कलाकार का काम मानव हृदय में प्रकाश भेजना है।
अँधेरा प्रकाश की ओर आकर्षित होता है, लेकिन प्रकाश को यह पता नहीं होता; प्रकाश को अंधकार को अवशोषित करना चाहिए और इसलिए उसे स्वयं ही समाप्त हो जाना चाहिए।
स्पष्ट और शांत उसकी आवाज़ श्रोताओं के ऊपर तैरती रही, जैसे एक प्रकाश, जैसे एक तारा भरा आकाश।
जो लोग इस बात से अनजान हैं कि वे अंधकार में चल रहे हैं, वे कभी भी प्रकाश की तलाश नहीं करेंगे।
इतनी चमकदार रौशनी में, अँधेरे में गुज़रे लंबे समय बाद, जो दिखता है वह सिर्फ़ स्याह और सफ़ेद है, सिर्फ़ रूपरेखाएँ जिनके ख़िलाफ़ पलक झपकाना चाहिए।
और वह चाँद को देखता है—गतिहीन प्रकाश से भरे बर्फ़ के गोल टुकड़े की तरह।
रोशनी और परिभाषाओं को फेंक दो, और वह बताओ जो तुम अँधेरे में देखते हो।
आलोक जो दृश्य दिखाता है, वह तो कोई छोटी-मोटी बात है नहीं।
दीपावली प्रकाश का पर्व है। इस दिन जिस लक्ष्मी की पूजा होती है। वह गरुड़वाहिनी है— शक्ति, सेवा और गतिशीलत उसके मुख्य गुण हैं।
आलोक प्रतिदिन हमसे केवल एक ही बात कह रहा है 'देखो।' बस और कोई बात नहीं। एक बार निहारकर देखो और कुछ न करो।
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नवयुग की ज्योति को जो एक बार देख लेता है, उसी को वह पवित्र बनाती हुई जलाने लगती हैं।
"विचारों को छोड़ों और निर्विचार हो रहो, पक्षों को छोड़ो और निष्पक्ष हो जाओ—क्योंकि इसी भाँति
वह प्रकाश उपलब्ध होता है, जो कि सत्य को उद्घाटित करता है।’’
प्रकाश और जिसका प्रकाश, इन दोनों में ही एक प्रतिकूलता रहती है, उस प्रतिकूलता के सामंजस्य द्वारा ही दोनों सार्थकता प्राप्त करते हैं। वास्तव में दो विरोधों के मिलाप के बिना प्रकाश हो ही नहीं सकता है।
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सच्ची रोशनी भीतर से पैदा होती है।
आस्था तर्क से परे की चीज़ है। जब चारों ओर अँधेरा ही दिखाई पड़ता है और मनुष्य की बुद्धि काम करना बंद कर देती है उस समय आस्था की ज्योति प्रखर रूप से चमकती है और हमारी मदद को आती है।
अंधकार का आलोक से, असत् का सत् से जड़ का चेतन से और बाह्य जगत का अंतर्जगत से संबंध कौन कराती है? कविता ही न।
उपवास करने से चित्त अंतर्मुख होता है, दृष्टि निर्मल होती है और देह हलकी बनी रहती है।
जड़-चेतनमय, विष अमृतमय, अंधकार-प्रकाशमय जीवन में न्याय के लिए कर्म करना ही गति है। मुझे जीना ही होगा, कर्म करना ही होगा। यह बंधन ही मेरी मुक्ति भी है। इस अंधकार में ही प्रकाश पाने के लिए मुझे भी जीना है।
ईश्वर जीवन है, सत्य है, और प्रकाश है। वही प्रेम है; वही परम मंगल है।
जो प्रकाश स्वरूप है; अगर उसका प्रकाश न हो तो वही तो उसकी बाधा है—प्रकाश ही उसकी मुक्ति है।
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आदर्श अंधकार से सूर्य की ओर उठने की आकांक्षा है। जो उस आकांक्षा से पीड़ित नहीं होता है, वह अंधकार में ही पड़ा रह जाता है।
कृतज्ञ नेत्र! सुंदर, मनोहर और हृदयहारी! किसने बनाए? क्यों बनाए? आत्मा के गवाक्ष। पवित्रता के आकाश | प्रकाश के पुंज।
ज्ञान, प्रेम और प्रकाश और दृष्टि है।
आलोक से मंडित होने के कारण फूल को एक प्रकार का लावण्य मिल जाता है, और छाया से घिर जाने पर वह और प्रकार का लावण्य पा लेता है।
हे एकता के देवता! मैं तुम्हारा मंदिर कहाँ पाऊँ? वह हृदय कहाँ है जिसके अंदर एकता का प्रकाश है?
कलाकार क्या है? वह अपने युग की स्फूर्ति के प्रकाश के रंग में डूबी भगवान की प्राणवान प्रेरक और कल्पक कूँची है।
जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।
धर्म आध्यात्मिक परिवर्तन है, एक अंतर्मुखी रूपांतरण है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाना है, आत्मोद्धारहीनता से आत्मोद्धार की स्थिति में पहुँचना है। यह एक जागरण है. एक प्रकार की पुनर्जन्मता है।
जिस प्रकार दीपक को प्रकाशित करने के लिए किसी अन्य दीपक की अपेक्षा नहीं होती, उसी प्रकार बोध आत्म-स्वरूप होने के कारण उसे किसी अन्य बोध की अपेक्षा नहीं होती।
सर्वदा और सर्वत्र सर्व गुणों के प्रकाश से श्रीकृष्ण तेजस्वी थे। वह अपराजेय, अपराजित, विशुद्ध, पुण्यमय, प्रेममय, दयामय, दृढ़कर्मी, धर्मात्मा, वेदज्ञ, नीतिज्ञ, धर्मज्ञ, लोकहितैषी, न्यायशील, क्षमाशील, निरपेक्ष, शास्ता, मोह-रहित, निरहंकार, योगी और तपस्वी थे। वह मानुषी शक्ति से कार्य करते थे, परंतु उनका चरित्र अमानुषिक था।
ईश्वरीय प्रकाश किसी एक ही राष्ट्र या जाति की संपत्ति नहीं है।
सूर्य-प्रकाश जब सीधे आता है तो धूप कहलाता है, जब चंद्र-ताल में नहाकर आता है तो चाँदनी कहलाता है।
यदि नए पल्लवों में श्वेत फूल रख दिया जाए या लाल वर्ण के मूँगे पर उज्ज्वल मोती रख दिया जाए तो उन (पार्वती) के अरुण अधरों पर कांति-वर्षा करने वाली मंद स्मिति की तुलना कर सकते हैं।
क्या कभी वह रोशनी ख़त्म हो सकती है जो महात्मा गांधी ने इस देश में दुनिया में डाली? आज से हज़ार वर्षं बाद भी यह रोशनी चमकेगी और इस देश को और दुनिया को चमकाएगी।
प्रणय, प्रेम! जब सामने आते हुए नीव्र आलोक की तरह आँखों में प्रकाश-पुंज उड़ेल देता है, तब सामने की वस्तुएँ और भी स्पष्ट हो जाती हैं।
तेजस्वी लोग तड़ित के समान आघात पाकर जल में भी प्रज्वलित रहते हैं।
यौवन से उत्पन्न अति गहन अंधकार न तो सूर्य द्वारा भेद्य है, न रत्नों के आलोक से छेद्य है और न दीप की प्रभा से दूर किया जा सकता है।
अपने घर के अंधकार में दूसरे का प्रकाश असह्य हो उठता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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