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अस्पृश्यता पर उद्धरण

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मेरी राय में हिंदू धर्म में दिखाई पड़ने वाली अस्पृश्यता का वर्तमान रूप, ईश्वर और मनुष्य के ख़िलाफ़ किया गया भयंकर अपराध है और इसलिए वह एक ऐसा विष है जो धीरे-धीरे हिंदू धर्म के प्राण को ही निःशेष किए दे रहा है।

महात्मा गांधी
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स्वच्छता इत्यादि के नियमों का पालन करते हुए और खाद्याखाद्य के विवेक की रक्षा करते हुए, सब वर्णों के एक पंक्ति में खाने में कोई भी दोष नहीं है। किसी ख़ास वर्ण के आदमी का ही बनाया भोजन होना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है।

महात्मा गांधी
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अपने मंदिरों को अछूतों के लिए खोलकर सच्चे देव-मंदिर बनाइए। आपके ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर के झगड़ों की दुर्गंध भी कँपकँपी लाने वाली है। जब तक आप इस दुर्गंध को नहीं मिटाएँगे, तब तक कोई काम नहीं होगा।

सरदार वल्लभ भाई पटेल
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अस्पृश्य तो वे हैं जो पापात्मा होते हैं। एक सारी जाति को अस्पृश्य बनाना एक बड़ा कलंक है।

महात्मा गांधी
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अस्पृश्य की व्याख्या आप जानते हैं। प्राणी के शरीर में से जब प्राण निकल जाते हैं, तब वह अस्पृश्य बन जाता है। मनुष्य हो या पशु, जब वह प्राणहीन बनकर शव होकर पड़ जाता है—तब उसे कोई नहीं छूता, और उसे दफ़नाने या जलाने की क्रिया होती है। मगर जब तक मनुष्य या प्राणिमात्र में प्राण रहते हैं, तब तक वह अछूत नहीं होता। यह प्राण प्रभु का एक अंश है और किसी भी प्राण को अछूत कहना भगवान के अंश का, भगवान का तिरस्कार करने के बराबर है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल
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अस्पृश्यता सहस्र फनों वाला एक सर्प है और जिसके एक-एक फन में विषैले दाँत हैं। इसकी कोई परिभाषा संभव ही नहीं है। उसे मनुष्य अन्य प्राचीन स्मृतिकारों की आज्ञा से भी कुछ लेना-देना नहीं है। उसको अपनी निजी और स्थानीय स्मृतियाँ हैं।

महात्मा गांधी
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जहाँ हरिजन नहीं जा सकते वे मंदिर नापाक हैं।

महात्मा गांधी
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रोटी-व्यवहार को जो महत्त्व आज दिया जाता है, वह छुआ-छूत-का पोषक ही है। वह संयम के बदले उलटा भोग को उत्तेजना देनेवाला बन गया है।

महात्मा गांधी
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मनुष्य सर्वभक्षी प्राणी नहीं है। उसके खाद्य-पदार्थों की हद अवश्य है पर वर्ण-धर्म के साथ इसका संबंध नहीं है। इसमें छूत-छात दोषरूप है।

महात्मा गांधी
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जिसने ईश्वर को पहचान लिया, उसके लिए तो दुनिया में कोई अछूत नहीं है। उसके मन में ऊँच-नीच का भेद नहीं है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल
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अस्पृश्य तो वे हैं जो पापात्मा होते हैं। एक सारी जाति को अस्पृश्य बनाना एक बड़ा कलंक है। अस्पृश्यता की जड़ हरेक हिंदू से निकल जानी चाहिए।

महात्मा गांधी
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जो हिंदू अद्वैतवाद को मानता है, वह अस्पृश्यता को कैसे मान सकता है?

महात्मा गांधी
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अस्पृश्यता हिंदू धर्म का अंग नहीं है, बल्कि उसमें घुसी हुई एक सड़न है, वहम है, पाप है और उसको दूर करना प्रत्येक हिंदू का धर्म है, उसका परम कर्तव्य है।

महात्मा गांधी
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अछूत दलित की अवमानना की अवस्था केवल व्यक्तिगत नहीं होती।

यू. आर. अनंतमूर्ति
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आज हम जिसे अस्पृश्यता मानते हैं उसके लिए शास्त्र में कोई प्रमाण नहीं है।

महात्मा गांधी
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तू इतना भर कह दे कि 'मैं छूऊँगा' कि अस्पृश्यता मर जाएगी। इतना महँगा कर्तव्य कभी इतना सस्ता नहीं हुआ।

विनायक दामोदर सावरकर
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अस्पृश्य माने जाने वाले लोग चार वर्ण के ही अंग हैं।

महात्मा गांधी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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