ऊब पर उद्धरण
ऊब एक मनोभाव है जो बोरियत,
उदासी, खिन्नता, एकरसता से उपजी बेचैनी का अर्थ देती है। कवि की ऊब कविता की संभावना भी हो सकती है।

ख़ुदा बस इतना ही करता है कि देखता रहता है हमें, और मार देता है—जब हम उबाऊ हो जाते हैं। हमको कभी भी, हो सके तो हर समय, उबाऊ होने से बचना चाहिए।

वह लोक कितना नीरस और भोंडा होता होगा जहाँ विरह वेदना के आँसू निकलते ही नहीं और प्रिय-वियोग की कल्पना से जहाँ हृदय में ऐसी टीस पैदा ही नहीं होती, जिसे शब्दों में व्यक्त न किया जा सके।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere