
ईश्वर की तो हमेशा कृपा ही होती है। हम उस कृपा को न पहचान सकें, यह हमारी मूर्खता है।

हे हरि! आपने अपने नाम को स्वयं से भी बढ़ा दिया, अपनी सब शक्ति उसमें भर दी। उसके स्मरण के लिए काल के नियम भी नहीं बनाए। ऐसी तुम्हारी कृपा हुई परंतु मेरा दुर्भाग्य तो देखो कि तुम्हारे नाम के प्रति मुझमें अनुराग ही नहीं उत्पन्न हुआ।

भक्ति-लता संतों की कृपा से ही उत्पन्न होती है। दीनता एवं दूसरों को मान देने की वृत्ति आदि शिलाओं की बाढ़ द्वारा उस लता को संतापराध रूपी हाथी से बचाकर, श्रवण-कीर्तन आदि जल से सींचते और बढ़ाते रहना चाहिए।

हे भगवान्! आपने अपने बहुत नाम प्रकट किए हैं, जिनमें आपने अपनी सब शक्ति भर दी है और आपने उनके स्मरण के लिए कोई काल भी सीमित नहीं किए हैं। आपकी ऐसी कृपा है परंतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य है कि इस जीवन में मुझमें कोई भक्ति नहीं है।

आपके सहारे के बिना कोई शरीर कैसे चल सकता है? आपके बिना कोई भी पौधा कैसे उग सकता है? आपके बिना कहीं भी पानी कैसे पड़ सकता है? आपके बिना यह त्यागराज आपका गुणगान कैसे कर सकता है?

ईश्वरीय कृपा किसी एक ही राष्ट्र या जाति की संपत्ति नहीं है।

आदमी जितना असमर्थ है, भगवान उतना ही समर्थ है। उसकी कृपा अपरंपार है और वह हज़ार हाथों से मदद करता है।

जिन्होंने प्रभु को आत्मनिवेदन कर दिया है, उन्हें कभी किसी प्रकार की चिंता नहीं करनी चाहिए। पुष्टि (कृपा) करने वाले प्रभु अंगीकृत जीव की लौकिक गति नहीं करेंगे।

हे तारा, तुमने बार-बार मुझे जो दुख दिया है और दे रही हो, वह ही तुम्हारी कृपा है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere