ईश्वर पर सबद

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

हम घरि साजन आए

गुरु नानक

काहे रे, बन खोजन जाई

गुरु तेग़ बहादुर

जब कबहूँ मन हरि भजै

संत परशुरामदेव

जो सुमिरूँ तो पूरन राम

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

रमईया तुम बिन रह्यो न जाइ

तुरसीदास निरंजनी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere