हाथ पर उद्धरण

हाथ हमारे प्रमुख अंग

हैं, जो हमें विशिष्ट कार्य-सक्षमता प्रदान करते हैं और इस रूप में श्रम-शक्ति के उपस्कर हैं। वे स्पर्श और मुद्राओं के माध्यम से प्रेम हो या प्रतिरोध—हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम भी बनते हैं। इस चयन में हाथ को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

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वस्तुतः मैं अपनी क़लम के माध्यम से सोचता हूँ, क्योंकि मेरे मस्तिष्क को तो बहुधा पता ही नहीं होता कि मेरे हाथ क्या लिख रहे हैं।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
  • संबंधित विषय : क़लम
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तुम्हारे हाथ स्वार्थमयी पृथ्वी की कलुष-कालिमा पोंछ देते हैं। प्रेम के दीप जलाकर, कर्तव्य की तपस्या से तुम संसार-पथ में गरिमा का वितरण करती हो।

नलिनीबाला देवी
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अपने हाथ से अपने आदमियों की सेवा और यत्न करने में कितनी तृप्ति होती है, कितना आनंद मिलता है, यह स्त्री जाति के सिवा और कोई नहीं समझ सकता।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
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सारा धन भगवान का है और यह जिन लोगों के हाथ में है, वे उसके रक्षक हैं, स्वामी नहीं।

श्री अरविंद
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दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं।

थॉमस एडिसन
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मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार पुकार कर कह रहा हूँ परंतु मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से ही अर्थ और काम की सिद्धि होती है, उसका सेवन क्यों नहीं करते।

वेदव्यास
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अंग गल गए हैं, बाल सफ़ेद हो गए हैं, दाँत गिर गए हैं, काँपते हाथों में डंडा लिया हुआ है, फिर भी आशा मनुष्य का पिंड नहीं छोड़ती।

आदि शंकराचार्य
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डरपोक को भय दिखाकर फोड़ ले तथा जो अपने से शूरवीर हो, उसे हाथ जोड़कर वश में करे।

वेदव्यास
  • संबंधित विषय : डर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere