
(परमेश्वर के स्वरूप के) ध्यान की अपेक्षा कर्मफल का त्याग श्रेष्ठ है।

ज्ञान की अपेक्षा (परमेश्वर के स्वरूप का) ध्यान श्रेष्ठ है।

तल्लीनता के साथ शून्य ध्यान में मग्न हो जाना यही असली ध्यान है।

जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।

ध्यान के लिए वस्तुतः सर्वोच्च ढंग की संवेदनशीलता चाहिए तथा प्रचण्ड मौन की एक गुणवत्ता चाहिए—ऐसा मौन जो प्रेरित, अनुशासित या साधा हुआ नहीं हो।
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ईश्वरीय पुकार दुर्लभ है परंतु वह हृदय जो उस पर ध्यान देता है, दुर्लभतर है।

प्रेम का क्या अर्थ है, यह पता लगाने के लिए आपको अपना पूरा जीवन देना होगा, वैसे ही जैसे यह पता लगाने के लिए कि ध्यान क्या है एवं सत्य क्या है, आपको अपना पूरा जीवन देना पड़ता है।

सारे ज्ञान-ध्यान का लक्ष्य सही कर्म है।

तप का तात्पर्य है तत्व के साक्षात् दर्शन करने का सच्चा प्रयत्न।

जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित दीपक चलायमा नहीं होता है, वैसी ही उपमा परमात्मा के ध्यान में लगे हु योगी के जीते हुए चित्त की कही गई है।

ध्यान में हमें पहला बोध जिस बात का होता है वह यह है कि खोजने का कोई मूल्य नहीं है; क्योंकि प्रायः वही चीज़ आपकी खोज का विषय बन जाती है जिसकी आप इच्छा ओर कामना करते हैं।

यदि आपका ध्यान सिर्फ़ एक व्यक्तिगत मामला है, अर्थात् एक ऐसी चीज़, जिसमें आप व्यक्तिगत तौर पर आनंद लेते हैं, तो यह ध्यान का निहितार्थ हैः मन और हृदय का संपूर्ण आमूल परिवर्तन।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere