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नाटक पर उद्धरण

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जो वेदों का अध्ययन तथा उपनिषद्, साँख्य और योगों का ज्ञान है, उनके कथन से क्या फल है? क्योंकि उनसे नाटक में कुछ भी गुण नहीं आता है। यदि नाटक के वाक्यों की प्रौढ़ता और उदारता तथा अर्थ-गौरव है, तो वही पांडित्य और विदग्धता की सूचक है।

भवभूति
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भिन्न-भिन्न रुचि वाले लोगों के लिए प्रायः नाटक ही एक ऐसा उत्सव है जिसमें सबको एक-सा आनंद मिलता है।

कालिदास
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तुम लोग इज़्ज़तों में और पर्दों में रहकर जाने किन-किन व्यर्थताओं को अपने साथ लपेट लेते हो और उनमें गौरव मानते हो। यह सब तुम लोगों की झूठी सभ्यता है, ढकोसला है। फिर कहते हो, हम सच को पाना चाहते हैं। तुम्हारा सच कपड़ों में है, लिबास में है और सच्चाई से डरने में है।

जैनेंद्र कुमार
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जितने भी अधिक से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं वे सब अनायास ही नम्रतापूर्वक और बिना किसी आडंबर के हुआ करते हैं। तो हल चलाने का कार्य और इमारत बनाने या पशु चराने या सोचने के कार्य ही वर्दी पहनकर, दीपों की चमक-दमक में और तोपों की गर्जन के बीच किए जा सकते हैं। इसके विपरीत दीपों की जगमगाहट, तोपों की गड़गड़ाहट, संगीत, वर्दी, सफ़ाई और चमक-दमक यह प्रकट करते हैं कि उनके बीच जो कुछ भी हो रहा है वह सब महत्तवहीन है। महान और सच्चे कार्य सदा सरल और विनम्र होते हैं।

लियो टॉल्स्टॉय
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जीवन-नाटक में कितनी भूमिकाएँ कीं, कितने अभिनय किए, कितने लोग कितने रूपों में जीवन की भूमिका अभिनय कराते-कराते मेरा हृदय विदीर्ण कर चले गए।

नलिनीबाला देवी
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उपदेश करो अपने लिए, तभी तुम्हारा उपदेश सार्थक होगा। जो कुछ दूसरों से करवाना चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो; नहीं तो तुम्हारे नाटक के अभिनय के सिवा और कुछ भी नहीं है।

हनुमान प्रसाद पोद्दार
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जीवन-नाटक के हर अंक में उसका रूप बदलता रहता है।

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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