
अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार करके उसकी ग़ुलामी करना ही कायरपन है।

प्रेम के भ्रम में भी प्रेम की आंशिक स्वीकृति होती है। शायद प्रेम की समग्रता को स्वीकार करना बहुत दुर्लभ है।

क्या जिसे हम क्षितिज कहते हैं, वह वास्तविकता है? या हम ऐसा कह रहे हैं? लेकिन हम अनंत को नहीं देख सकते, इसलिए हम ऐसी काल्पनिक सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं।

जीवन में हर वह चीज़ जिसे हम वास्तव में स्वीकार करते हैं, उसमें बदलाव आता है। इसलिए दुख को प्रेम बनना चाहिए। यही रहस्य है।

एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने को मैं उचित नहीं मानता। मेरी कोशिश किसी दूसरे के धार्मिक विश्वास को हिलाने की या उनकी नींव खोदने की नहीं, बल्कि उसे अपने धर्म का एक अच्छा अनुयायी बनाने की होनी चाहिए। इसका तात्पर्य है सभी धर्मों की सच्चाई में विश्वास और इस कारण उन सबके प्रति आदरभाव का होना। इसका यह बी मतलब है कि हममें सच्ची विनयशीलता होनी चाहिए, इस तथ्य की ल्वीकृति होनी चाहिए कि चूँकि सभी धर्मों को हाड़-माँस के अपूर्ण माध्यम से दिव्य-ज्ञान प्राप्त हुआ है, इसलिए सभी धर्मों में कम या ज़्यादा मात्रा में मानवीय अपूर्णताएँ मौजूद हैं।

कवि के लिए, मौन स्वीकार्य ही नहीं, बल्कि ख़ुश करने वाली प्रतिक्रिया है।

मेरे विचारों का दायरा संभवतः मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक सँकरा है।

रुचि वस्तुओं को स्वीकार्य बना देती है।

स्वीकारोक्ति को आपके नए जीवन का अंग बनना पड़ेगा।

चुंबन भी एक कर्मकांड है, किंतु वह सड़ी हुई औपचारिकता नहीं है। पर कर्मकांड वहीं तक स्वीकार्य है, जहाँ तक वह चुंबन की तरह प्रामाणिक है।

अपने मंदिरों को अछूतों के लिए खोलकर सच्चे देव-मंदिर बनाइए। आपके ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर के झगड़ों की दुर्गंध भी कँपकँपी लाने वाली है। जब तक आप इस दुर्गंध को नहीं मिटाएँगे, तब तक कोई काम नहीं होगा।
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जो है आत्मविश्वासी वही तो अस्तिवादी है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere