
पुरुषों और स्त्रियों को जिस समाज में वे रहते हैं, मुख्यतः उसकी राय और शिष्टाचार के अनुरूप शिक्षित होना चाहिए।

यह स्त्री शिष्टाचार में क्रांति लाने का समय है—उन्हें उनकी खोई गरिमा लौटाने का समय। यह अपरिवर्तनीय नैतिकता को स्थानीय शिष्टाचार से अलग करने का समय है।

शिष्टाचार के कारण अपनी आत्मा को भी तिनके के समान लघु बनाना चाहिए, अपना आसन छोड़कर अतिथि को देना चाहिए, आनंद के अश्रुओं से जल देना चाहिए और मधुर वचनों से कुशलक्षेम पूछना चाहिए।

विनम्रता के बारे में : वरिष्ठों के प्रति विनम्र होना कर्त्तव्य है, बराबरी वालों के प्रति विनम्रता शिष्टाचार है, अधीन लोगों के लिए विनम्रता बड़प्पन है और सभी के प्रति विनम्रता सुरक्षा है।

मनुष्य के भीतर जो कुछ वास्तविक है, उसे छिपाने के लिए जब वह सभ्यता और शिष्टाचार का चोला पहनता है, तब उसे संभालने के लिए व्यस्त होकर कभी-कभी अपनी आँखों में ही उसको तुच्छ बनना पड़ता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere