
जो व्यक्तित्व कामनाओं का दलन कुछ अधिक दूर तक करता है, उसका व्यक्तित्व व्यक्तित्व न रहकर चरित्र बन जाता है।

साहित्य की आधुनिक समस्या यह है कि लेखक शैली तो चरित्र की अपनाना चाहते हैं, किन्तु उद्दामता उन्हें व्यक्तित्व की चाहिए।

एलियट कला को व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं मानते हैं, किन्तु रवीन्द्रनाथ और इक़बाल, दोनों का विचार है कि कला व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।
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स्वातंत्र्य-महत्ता का जिसमें जितना ऊँचा और प्रखर बोध होता है उसी का व्यक्तित्व अनुशासन की पुष्ट भित्ति पर खड़ा होता है।

जिसके जीवन में संघर्ष नहीं है, तनाव नहीं है, कर्मठता और उत्साह नहीं है—उसका व्यक्तित्व भी नहीं है।

हमारा व्यक्तित्व जैसा होगा, वैसा ही दुनिया का नक्शा हम बनाएँगे। इसे 'चारित्र्य' कहते हैं।

व्यक्तित्व का आरम्भ समर का आरम्भ है, जीवन को घेरनेवाली बाधाओं पर आक्रमण का आरम्भ है।

जो हम हो नहीं सकते, उसके लिए प्रयत्न करना बेकार है।

चरित्र एकान्तवादी और व्यक्तित्व अनेकान्तवादी होता है।

जहाँ तक प्रकृति का प्रश्न है वहाँ व्यक्तित्व की विषमता नहीं।

व्यक्तित्व के प्रसार में सबसे बड़ी बाधा पुराने मूल्य उपस्थित करते हैं, पुरानी नैतिकता उपस्थित करती है।

कुरूप मन ही व्यक्तित्व को विरूप बनाता है।

बोल्ड होना आवश्यक आदत है। इसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाने के लिए इस अभ्यास को करें।
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व्यक्तित्व के पुटपाक का पावक दु:ख ही है।

व्यक्तित्वशाली वह है, जो शंकाओं को अपने चारों ओर मँडराने की छूट देता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere