असंतोष प्रगति का लक्षण माना जाता है; किंतु वह उसका वास्तविक लक्षण तो तब सिद्ध होगा, जब प्रगति वस्तुतः हो, होकर रहे।
जब तक आदमी अपनी चालू हालत में ख़ुश रहता है, तब तक उसमें से निकलने के लिए उसे समझाना मुश्किल है। इसलिए हर एक सुधार के पहले असंतोष होना ही चाहिए।
अशांति असल में असंतोष है।
मैं कई ऐसे करोड़पतियों को जानता हूँ, जो ख़ुद को दिवालिया महसूस करते हैं, जिन्हें लगता है कि उनके पास कुछ भी नहीं है। इसका कारण यह है कि वे लगातार अपनी तुलना किसी और से करते रहते हैं, किसी ऐसे व्यक्ति से जिसके पास उनसे अधिक पैसा है।
अपर्याप्ति की छटपटाहट का एहसास होते ही कुछ गहराई में जाना अनिवार्य हो जाता है और वहीं से ख़तरे की शुरुआत होती हैं।
एक नकारात्मक गुण का उदाहरण है आत्मसंतोष।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere