लोकतंत्र पर कविताएँ

लोकतंत्र जनता द्वारा,

जनता के लिए, जनता का शासन है। लोकतंत्र के गुण-दोष आधुनिक समय के प्रमुख विमर्श-विषय रहे हैं और इस संवाद में कविता ने भी योगदान किया है। प्रस्तुत चयन ऐसी ही कविताओं का है।

कौन जात हो भाई

बच्चा लाल 'उन्मेष'

पटकथा

धूमिल

कोई एक और मतदाता

रघुवीर सहाय

कोई और

देवी प्रसाद मिश्र

जो सुहाग बनाते हैं

रमाशंकर सिंह

जनादेश

संजय चतुर्वेदी

चरवाहा

गोविंद निषाद

उत्सव

अरुण कमल

हिंदू सांसद

असद ज़ैदी

मुझे आई.डी. कार्ड दिलाओ

कुमार कृष्ण शर्मा

चेहरा

रघुवीर सहाय

बकवास

ज़ुबैर सैफ़ी

भाषण

रघुवीर सहाय

लोकतंत्र का समकालीन प्रमेय

जितेंद्र श्रीवास्तव

पीठ

अमित तिवारी

मक़सद

पीयूष तिवारी

ताक़तवर आदमी

मंगलेश डबराल

नगड़ची की हत्या

रमाशंकर सिंह

बूथ पर लड़ना

व्योमेश शुक्ल

हम गवाही देते हैं

संजय चतुर्वेदी

कार्यकर्ता से

लीलाधर जगूड़ी

सम्राट : तीन स्वर

तरुण भारतीय

साहब लोग रेनकोट ढूँढ़ रहे हैं

जितेंद्र श्रीवास्तव

पालकी

कुँवर नारायण

बर्बरता का समान वितरण

देवी प्रसाद मिश्र

डेमोक्रेसी

अशोक चक्रधर

तंत्र

सौरभ कुमार

हैंगओवर

निखिल आनंद गिरि

परिभाषित के दरबार में

आर. चेतनक्रांति

आज़ादी के मूल्य

गोविंद निषाद

विपक्ष

राजेश सकलानी

पीस एकॉर्ड

तरुण भारतीय

मतदान

अमित तिवारी

एक सवाल

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

आपकी हँसी

रघुवीर सहाय

युवा विधायक

चंद्रकांत देवताले

आश्चर्य

कुसुमाग्रज

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere