
जिस तरह लियोनार्डो दा विंसी ने इंसानी शारीरिक रचना विज्ञान का अध्ययन किया और मुर्दा शरीरों को क़रीब से समझा, उसी तरह मैं आत्माओं के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश करता हूँ।

किसी भी प्रॉपगैंडा मॉडल में खुले बाज़ार की मान्यताओं में एक प्रारंभिक विश्वसनीयता होती है। ज़ाहिर तौर पर, प्राइवेट मीडिया, वे बड़े कोर्पोरेट हैं जो अन्य व्यापारों (विज्ञापनदाताओं) को एक प्रोडक्ट (पाठक और दर्शक) बेच रहे हैं। राष्ट्रीय मीडिया केवल अभिजात्य वर्ग के मुद्दों और धारणों पर ध्यान देती है। इससे जहाँ एक तरफ़, विज्ञापनों के चयन के लिए बढ़िया ‘प्रोफ़ाइल’ बनाने में मदद मिलती है, वहीं दूसरी तरफ़ ये निजी और सामाजिक क्षेत्रों में निर्णय-निर्धारण में भी ज़रूरी भूमिका निभाते हैं। अगर राष्ट्रीय मीडिया, दुनिया का एक संतोषजनक यथार्थवादी चित्रण नहीं करती तो वह अपने अभिजात्य दर्शकों की ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ मानी जाएगी। यही मीडिया, दुनिया की जो व्याख्या करती है, उसमें इन अभिजात्य लोगों से भरे हुए सरकारी और निजी संस्थानों, ख़रीदारों, विक्रेताओं आदि की ज़रूरतों और चिंताओं का चित्रण भी उनका ‘सामाजिक उद्देश्य’ है।

बहुत पहले ही मैं यह समझ गया था कि इस पृथ्वी पर ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसमें संभावित नर्क के बीज न हों; एक चेहरा, एक शब्द, एक कम्पास या एक सिगरेट का विज्ञापन, जैसी चीज़ें मनुष्य को पागल बनाने में सक्षम हैं; अगर वह उन्हें भूल नहीं पाए।

टेलीविज़न पर बड़े कॉर्पोरेट विज्ञापनदाता शायद ही कभी ऐसे कार्यक्रमों को प्रायोजित करते हैं जो कॉर्पोरेट गतिविधियों की गंभीर आलोचनाओं में संलग्न होते हैं, फिर चाहे पर्यावरण के स्तर में गिरावट की समस्या हो, चाहे सेना या औद्योगिक क्षेत्र के कामकाज के तरीक़े पर कोई बात कर रहा हो या कोई, तीसरी दुनिया में होने वाले तानाशाही रवैये के कॉर्पोरेट समर्थन और उनके द्वारा उठाए जाने वाले लाभ पर बात करे।


जो व्यक्ति ज्ञान की तलवार से तृष्णा को काटकर, विज्ञान की नौका से अज्ञान रूपी भवसागर को पार कर, विष्णुपद को प्राप्त करता है, वह धन्य है।

वैज्ञानिक एकांत में विज्ञान की साधना करता है, प्रचार के लिए कुछ नहीं करता। लेकिन लगता है कि जैसे बाक़ी सारी दुनिया उसकी खोज के आविष्कार को पाने को आतुर है। विज्ञान का अन्वेषित सत्य सहज ही जगत का सत्य बन जाता है। धर्म के सत्य पर प्रवचन होते हैं, शास्त्रार्थ होते हैं, फिर भी लगता है कि वह शास्त्र में रह जाता है, मनों में नहीं लिया जाता, क्यों?

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere