मुसलमान पर उद्धरण
भारतीय समाज में अल्पसंख्यक
होना भी बहुत जटिलताओं से भरा रहा है। सांप्रदायिकता के उभार ने समय-समय पर भारतीय समाज में धर्मनिरपेक्षता के मूल्य को क्षतिग्रस्त किया है। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक आहत मुस्लिम मन और समाज हुआ है। इस चयन में भारत में मुस्लिम होने की जटिलता और मुस्लिम मन की काव्याभिव्यक्तियाँ शामिल की गई हैं।

मेरी आज चलती कहाँ है? मेरी चलती तो पंजाब न हुआ होता, न बिहार होता, न नोआखाली। आज कोई मेरी मानता नहीं। मैं बहुत छोटा आदमी हूँ। हाँ, एक दिन मैं हिंदुस्तान में बड़ा आदमी था। तब सब मेरी मानते थे, आज न तो कांग्रेस मेरी मानती है, न हिंदु और मुसलमान। कांग्रेस आज है कहाँ? वह तो तितर-बितर हो गई है। मेरा तो अरण्य-रोदन चल रहा है।

ऐ जाहिद! मैं शाहों का शाह हूँ-तेरी तरह नंगा कंजूस नहीं हूँ, मूर्तिपूजक और काफ़िर हूँ, ईमान वाले मुसलमानों से मैं अलग हूँ, यों मैं कभी-कभी मस्जिद की ओर भी जा निकलता हूँ, पर मुसलमान नहीं हूँ।

लगता ऐसा है कि ईमानदार लोगों को हिंदू-मुसलमान बनाने में बेरोज़गारी का हाथ भी है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere